Thursday, 30 November 2017

कविता - तू चल

तू चल 
मैं भी चलूँ 
तेरे साथ,
रुकेंगे न तब तक 
जब तक होगी न शाम, 
छाएगी न तब तक 
काली घनघोर अँधेरी रात, 
चलते ही जायेंगे 
बिना रुके बे बात 
छोड़ के सारा संसार ,
पेड़ो की झुरमुट व
आधी- अधूरी छांव में 
चलते ही रहेंगे 
गुनगुनाते ही रहेंगे ,
तेरे पीछे-पीछे
 चलता ही जाऊंगा 
जब तक तू न थकेगी 
मैं भी न थकुंगा,
मेरे पांव चल पड़ेंगे 
अपने आप ,
तू चल 
मैं भी चलू 
तेरे साथ |

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


कविता - तेरी याद

तेरी याद
यहाँ पर भी है 
इस सफ़र में ,
मुंबई के कार्टर बीच  पर 
बांद्रे की व्यस्त सड़को पर 
और 
समुंद्र की लहरों में 
ट्रेन की खिड़की से 
झांकते नजारों में ,
तू एक पल के लिए 
भी 
गायब नहीं होती 
मेरे ख्यालो से 
और 
तेरी याद 
हर पल साथ रहती है 
मेरे हर सफ़र में 
और 
इसी याद में 
सफ़र कब कट जाता 
पता ही नही चलता  है |

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Wednesday, 29 November 2017

कविता - मेरी कविता

मेरे आंतरिक मनोभावों का 
सार ही तो है कविता,
कविता, मेरी सांसो का 
चलना है ,
कविता में पिरोये गये शब्द 
मेरी आत्मा की 
आवाज ही तो है ,
ये शब्द मात्र 
कविता बनाने के 
लिए ही तो नहीं है,
इन शब्दों में
छुपी होती है 
तमाम संवेदनाए ,
अनेक प्रकार की खुशियाँ 
और  तमन्नाए ,
कविता मेरे 
जीवित होने का 
प्रमाण ही तो है,
अनगिनित बाते जो 
कही जा सकती है 
कविता से, 
क्या भला ?
कही जा सकती है सबसे,
अनकही बातो की 
जुबां ही तो है कविता,
कविता मुझे 
मरने नहीं देती है,
कविता ही तो है जो 
मुझे जिन्दा रखती है |

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Tuesday, 28 November 2017

कविता - कुछ वक़्त

ज्यादा कुछ नहीं 
कुछ वक़्त 
पास बैठो मेरे , 
मुझको अपनी
 खुश्बू में खोने दो ,
बातें जो तुम्हारी 
मीठी और रसीली है 
कुछ वक़्त 
उनको पीने दो ,
ज्यादा कुछ नहीं 
कुछ वक़्त 
अपने नयनों से 
यूँ ही मुझे तकते रहो ,
हाथो से अपने 
मुझको छूकर 
ज्यादा कुछ नहीं 
बस 
कुछ वक़्त के लिए 
एक नूतन-सा एहसास 
मुझमे भरती रहो | 

द्वारा - नीरज  'थिंकर'


कविता - मरीन ड्राइव

काश तू होती तो 
मरीन ड्राइव की लहरे भी 
दिल को छूती ,
ठंडी बयार है 
और 
मौसम भी मनमोहक है 
पर वो 
सुकून कहाँ है इसमें ?
किनारे पर जगमगाती 
ये लाइटे 
लहरों में जान भर रही है 
फिर भी 
तेरे बिन इस रात में 
वो बात कहाँ है ?
ग़र 
तू होती आज तो 
यें रात कभी खत्म 
नहीं होती ,
हँसी-मुस्कुराहट होती 
जो 
पल-पल मुझे  घायल करती 
और 
यें लहरे भी
दिल को छूकर 
एक सिहरन-सी पैदा करती 
काश तू होती तो 
यें रात और भी सुहानी लगती |

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Friday, 24 November 2017

कविता - मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी
अपार्टमेंट-सी 
हुए जा रही है
कुछ गज़ के 
कमरें में,
सपनों को लिये
केद हुए
जा रही है ,
सोचा ख़्वाबों को
लगा पर
उड़ाऊँगा ,
झरनो़ के क़रीब
ले जा कर
तरु की फुनगी
पर इनको झूलाउँगा
पर 
ख़्वाबों का यूँ
धूमिल हो जाना
इनका यू
चारदीवारी में केद 
हो जाना,
प्राणमन का 
हर जाना-सा लगता है ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Wednesday, 22 November 2017

कविता - कितना कुछ



कितना कुछ बदल 
रहा है ना
इस जहाँ में,
रिश्तों का अर्थ 
तो 
कभी रिश्ते ही,
संवेदनाएँ अपनी जगह
छोड़ रही है
तो 
कभी लोग ही,
आँसुओं का अर्थ 
बदल रहा है 
तो 
कभी आँखों के नज़ारे,
हँसी भी अपना असर
छोड़ रही है,
तो 
कभी हँसी से 
लिपटे ख़्वाबो के सितारे ।


द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Tuesday, 21 November 2017

कविता - चाहे तुम




तुम चाहे भले ही
भूल जाना मुझे,
सुनहली यादों को
तुम मेरी,
 भले ही मिटा देना 
बातों को प्यारी तुम 
अंधकार का लेप 
भले ही चढ़ा देना,
पर 
क़सम ख़ुदा की 
तेरी कुसुमित 
हँसी को मैं
भूला ना पाऊँगा,
तुम्हारे हाथों की
छुअन से उपजें
मृदुल भावों को
मैं , 
विस्मृत कभी 
ना कर पाऊँगा 
और 
तुम्हारे बदन की 
ख़ुश्बू से नहायी
प्रकृति के परिवेश से
कभी ना मैं 
निकल पाऊँगा,
चाहे भले ही 
तुम मुझे,
मिटा देना
 हर जगह से,
हर लम्हों से,
चाँदनी रात में
सजायें ख़्वाबों से,
पर
 तुमको मैं,
जीवन भर के ख़ज़ाने-सा 
हर वक़्त सीने-से
 रखूँगा चिपकाये।

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

कविता - कि जाने दे ?


                                                    
तुम्हारे संग वादियों में
कहीं खो जाने की
तमन्ना रहने दे 
कि जाने दे ?
कुछ बेहतर क़िस्से
और
साथ बीते पलों को
धूमिल कर 
बढ़ चले
कि जाने दे ?
दोनो के बदन की
ख़ुश्बू से नहायीं 
 बहती हवा को
रोक ले कि जाने दे ?
मिलकर फिर से 
वो लम्हे दोहरायें 
लड़ाईयों का ,
और 
फिर एक-दूजे को 
मनाने का 
वो दौर फिर से लाये
कि जाने दे ?
अलसाए ख्वाबों को 
जगाएं
 कि जाने दे ?
छूने का वो एहसास
जो निर्मित करता है
एक नया संसार 
उसे थाम ले 
कि जाने दे ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


एक पत्र दादा जी के नाम

दादा जी                                        आपके जाने के   ठीक एक महीने बाद   मैं लिख रहा हूँ पत्र   आपके नाम , मैं पहले...