Tuesday, 28 November 2017

कविता - मरीन ड्राइव

काश तू होती तो 
मरीन ड्राइव की लहरे भी 
दिल को छूती ,
ठंडी बयार है 
और 
मौसम भी मनमोहक है 
पर वो 
सुकून कहाँ है इसमें ?
किनारे पर जगमगाती 
ये लाइटे 
लहरों में जान भर रही है 
फिर भी 
तेरे बिन इस रात में 
वो बात कहाँ है ?
ग़र 
तू होती आज तो 
यें रात कभी खत्म 
नहीं होती ,
हँसी-मुस्कुराहट होती 
जो 
पल-पल मुझे  घायल करती 
और 
यें लहरे भी
दिल को छूकर 
एक सिहरन-सी पैदा करती 
काश तू होती तो 
यें रात और भी सुहानी लगती |

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

No comments:

Post a Comment

एक पत्र दादा जी के नाम

दादा जी                                        आपके जाने के   ठीक एक महीने बाद   मैं लिख रहा हूँ पत्र   आपके नाम , मैं पहले...