Wednesday, 24 November 2021

इश्क़ में जयपुर होना

बारिश की
हल्की-हल्की बूँदो में
उसका यूँ
हाथ पकड़कर चलते जाना ,
तमाम वाहनों की शोरगुल में भी
हमारा एकांत-सा हो जाना,
नेहरु गार्डन की
अधपकी छांव में भी
सुकून-सा महसूस होना
उसकी बेपरवाह हँसी में
गुलाबीनगर की ख़ूबसूरती का
कहीं खो जाना
एक अच्छा एहसास देता है,

ऑटो में उसका सटकर बैठना
एक दूरी तय करना
उसकी खूशबु का मुझमें उतर जाना
अच्छा लगने लगा है,
उसका पिछली अनेक
अनकही बातों का
बिना रुके बड़ी नाजुकता से
बयाँ करना
इसी बीच मेरा उसकी ज़ुल्फ़ों को
पकड़कर खेलना
इश्क़ में नया पेगाम रचना
बड़ा अच्छा लगने लगा है,
सुबह से कुछ भी न खाने पर भी
भूख का न लगना
इश्क़ में पिंक होना ही तो है ।


द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Saturday, 8 May 2021

माँ

हर दुःख की घड़ी में
याद माँ तू ही आती है
आँखो से आँसू झर-झर
जब जाता है,
तुझे ही पुकार मैं
हिम्मत जुटाता हूँ
माँ तुझे ही सोचकर
हर नया क़दम
मैं बढ़ाता हूँ,
तेरी ख़ुशी के लिए
मैं अपनी हर ख़ुशी
लुटाने को तैयार हूँ,
हर ग़म सहकर
तूने जो मुझे
मुस्कान दी,
मेरी ख़्वाहिश है
इसके बदलें
मैं भी तुझे
वो मुस्कान दूँ ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Monday, 12 April 2021

मूर्तियाँ

कोई भी मूर्ति                                                 
सिर्फ़ मूर्ति नहीं
होती है,
कुछ मूर्तियाँ स्त्रोत
होती है प्रेरणा का
तो
कोई ज़ुल्मों का
प्रतीक होती है,
किसी में छुपी
होती है,
कहानी संघर्षों की
तो
कुछ बेवजह जगह घेरे
विद्यमान होती है,
हर मूर्ति पत्थर की
होकर भी पत्थर दिल
नहीं होती है,
उनमें भरी होती है
रहमदिली,
वे करुणा, दया
और सद्भाव का
संदेश देती है,
इसीलिये तो
नफ़रत फैलाने वालों
द्वारा
ऐसी ही
मूर्तियों को तोड़ा
जाता है,
उन्हें कचरें के ढेर में
फेंक दिया जाता है
ताकि कोई
न्यायपसंद व्यक्ति
टूट जाए अंदर से

न्याय, सद्भाव व भाईचारे
की
बात करने से पहले सोचे
हज़ार बार
क्योंकि
न्याय की प्रतीक
यें मूर्तियाँ
उसे प्रेरित करतीं है
और जब इनको
तोड़ा जाता है
बार-बार
तब वो व्यक्ति भी
टूटता है उतनी ही बार !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

वो कहतें है '

वो कहतें है
चलो, ज़िन्दगी से एक 
समझोता करतें है, 
साथ बिताने की तमाम 
खवाहिशों को मार 
एक मशवरा करतें है,
दूर रहकर 
साथ होने का 
एक खेल रचते है,
एक जीवन में 
दो किरदार निभाने का 
चलो, एक वादा करतें है,
कहीं भी रहे इस जग में 
हम मगर 
कभी न भूलने का 
एक ख़ुफ़िया ऐलान करतें है,
मैं कहता हूँ
मेरे प्रिय 
बाकि वादों की तरह 
यें वादें और यें मीठी- सी 
कसमें भी 
टूट जाएगी
राख़ बनकर हवा संग 
उड़ जाएगी,
जब मजबूती हमारी 
इन ख्यालों से 
खोखली हो जाएगी 
तब विकल्प तुम्हारें 
विकल्प ही रह जाएगा !! 

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 


Thursday, 25 March 2021

अनजानी यात्रा

न जाने कहाँ से
शुरू हुयी 
ये यात्रा ,
कहाँ ख़त्म होगी
यह भी नहीं पता ,
इन यात्राओं के बीच
न जाने कितने
क़िस्से हुए
कितने याद रहे?
और                                         
कितने धूमिल हुए?
रिश्ते जो बने अनजानों से
कितने टिके रहे
कितने पीछे छूट गये
यह भी तो नहीं मालूम,
इस यात्रा में 
कुछ यादगार अनुभव हुए 
तो 
कुछ भूल जाने लायक,
कुछ घटनाएँ जहन में 
जम गयी 
तो 
कुछ हवा- सी उड़ गयी,
ये यात्रा कहाँ तक ले जाएगी ?
या
साथ मेरा छोड़
कहीं, दूर निकल जाएगी?


द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

कौन जाने ?

कौन जाने
किसी सीने में
कितने अंगारे है !
हँसी में जिसके
रुदन नज़र आये
आँखें जिसकी
हँसती-सी रो जाये
चाल जब पल-पल
बदलने लगे,
शनेः शनेः सब कुछ
से जब
बदलता जाए,
कौन जानें
किसी सीने में
कितने अंगारे है !

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

दोस्तों का प्यार

दोस्ती में
यूँ दोस्तों का प्यार
ज़ाहिर करना ,
ज़बरदस्ती एक दूजे
पर हक़ जताना,
ना-ना करने पर
भी हाँ करवाना ,
बिना छिने कोई
चीज़ न खाना,
हमेशा ख़ुराफ़ाती
दिमाग़ से
तरह-तरह की हरकतों
को अंजाम देना
कभी-कभी बुरा
तो लगता है..
पर
वक़्त बीतने पर
एक मीठा-सा एहसास
भी तो देता है..
उन सच्चे दोस्तों ने
भले ही परेशान
बहुत किया हो
पर
धोखा कभी नहीं दिया !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

स्याही

जब स्याही
क़लम से निकलकर
शब्दों का रूप
लेकर
काग़ज़ पर बिखरतीं है
तब वह सिर्फ़
स्याही नहीं रह जाती है
वह बन जाती है
कहानी, कविता
या फिर
कोई प्रेम गीत
जिसमें जन्म लेती है
संवेदनाएँ,ख़ुशियाँ
तो कुछ तृष्णाएँ
जो किसी में रुदन
तो किसी में हास्य
पैदा करती है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

भावनाएं

क्या भावनाएँ
मर जाती है ?
कुछ वक़्त बीतने पर
फिर भी इंसान ज़िंदा रहता है,
क्या शरीर
चल सकता है ?
बिना धड़कनो के,
क्या कोई रो सकता है ?
बिना आँखों से
आँसू बहाए,
क्या कोई बेज़ुबान
हो सकता है ?
बहुत बोलने पर भी,
क्या भीड़ में भी कोई ?
अकेला महसूस
कर सकता है,
क्या साँसों को
रोक कर
कोई साँस ले सकता है ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

एक पत्र दादा जी के नाम

दादा जी                                        आपके जाने के   ठीक एक महीने बाद   मैं लिख रहा हूँ पत्र   आपके नाम , मैं पहले...