Thursday, 6 January 2022

पहले कभी

इतना

जिर्ण-शीर्ण मैं

हले तो कभी न था,

बारिश आयी

धुप खिली

पतझड़ आया

ठंडी बयार चली

गर्म हवाओं ने सताया

दिन गुजरा

रात ढली

सब कुछ बदला

मगर

पहले कभी तुम इतने तो

न बदले थे

और न ही

पहले कभी

मैं इतना गुमशुम हुआ था!!


द्वारा - नीरज 'थिंकर'

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