अन्तर्मन से निकले शब्दों का सयोंग ही कविता का रूप है |
इतना
जिर्ण-शीर्ण मैं
पहले तो कभी न था,
बारिश आयी
धुप खिली
पतझड़ आया
ठंडी बयार चली
गर्म हवाओं ने सताया
दिन गुजरा
रात ढली
सब कुछ बदला
मगर
पहले कभी तुम इतने तो
न बदले थे
और न ही
पहले कभी
मैं इतना गुमशुम हुआ था!!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
दादा जी आपके जाने के ठीक एक महीने बाद मैं लिख रहा हूँ पत्र आपके नाम , मैं पहले...
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