Thursday 19 April 2018

कविता - हंसी कैसे आएगी ?

इच्छाओ को जब 
दबा दिया जाए 
तो 
हंसी कैसे आएगी ? 
स्वतंत्रता जब 
छीन ली जाए 
लिंग के आधार पर 
तो 
हंसी कैसे आएगी ?
सपने जब 
टूट जाए सारे ,
आशाएं जब 
धूमिल हो जाए 
तो 
हंसी कैसे आएगी ?
मंजिल की और
बढ़ने वाले कदमों को जब 
बढ़ने से पहले ही
काट दिया जाए 
तो 
हंसी कैसे आएगी ?
इमारत जब 

बनने से पहले ही 
ढहा दी जाए 
और 
उसमे निर्मित ख़्वाबो 
का जब 
क़त्ल कर दिया जाए 
तो 
हंसी कैसे आएगी ?
कुछ करने के जुनून 
का जब 
पितृसत्तात्मक समाज द्वारा 
गला घोंट दिया जाए ,
परम्परा से हटकर 
लिए गए फैसले को जब 
पैरों तले रौंद दिया जाए 
तो 
हंसी कैसे आएगी ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

घर की याद किसको नहीं आती है !

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