नहीं आती है,
संवेदना
अन्तर्मन से निकले शब्दों का सयोंग ही कविता का रूप है |
Tuesday 9 August 2022
घर की याद किसको नहीं आती है !
Tuesday 7 June 2022
अपनी दुनिया
Sunday 27 March 2022
मेरी माँ जब रोटी पकाती है
![]() |
Pic courtsey- Neeraj 'Thinker' |
Sunday 13 March 2022
क्या फ़िर से !!
Tuesday 18 January 2022
अतीत कि बातें
भीड़ से नजरें चुराकर
जब मैं तुम्हारा
हाथ थाम कर चलता था
बेखबर हो दुनिया से जब
मैं तुमको बाहों में भरता था
अनगिनत बातों का कारवाँ
जब तुम्हें देखते हुए बढ़ता था
तुम्हारी आँखें बिन बोले ही
बहुत कुछ कहती थी जब
इन्हीं सब सिलसिलों के बीच
हम जब बिछड़ते थे
आँखें दोनों की नम होकर
कुछ न ज़ब कह पाती थी
दो विपरीत दिशाओं में मुड़कर
जब हम एक दूसरे की नजरों से
गायब हो जाते थे
मैं अपनी मंज़िल पर पहुंचने तक
तुझको ही सोचता रहता था
और तू जब अपनी मंज़िल पहुंच कर
उन साथ बिताये पलों को याद करते हुए
कहती थी 'वापस कब आओगे, मिलने,
इन सब लम्हों को दौहराने ".
तब मैं तुम्हें एक आश्वासन देता था
फ़िर से मिलने का,
मगर यें सब अब
एक अतीत बन चूका है
एक ख़्वाब जो हुआ है पूरा कभी
मगर अधूरा है जो शायद फ़िर कभी
मुक़म्मल होगा नहीं!!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
Sunday 16 January 2022
आज भी तुझे
आज भी मैंने यादों के
गुलदस्ते में
संभाल रखा है तुझे
तेरी जुल्फों को उसमें आज
भी संवार रखा है मैंने,
तेरी महकती खुश्बू
और
मनभावक हँसी को
सझा रखा है मैंने
आज भी उसमें,
तेरी बातों को कुछ जो
तूने कहीं थी और कुछ
जो तू कहने वाली थी
सब सहज़ रखा है मैंने
अपने पास उस गुलदस्ते में
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
अस्थिर सब
जब सब कुछ ही
ख़तम हुआ जा रहा है
हर क्षण,
तों क्यों करें चिंता
कि
क्या बचेगा, क्या मिलेगा
क्या रहेगा?
जब दूरी तुम्हारी और मेरी
हर पल, निरंतर बढ़ती ही
जा रही है
तों फ़िर क्यों जाने से रोकने
कि असफल कोशिश करें
क्योंकि यहाँ कुछ भी तों
रुकेगा नहीं, कुछ भी तों
ठहरेगा नहीं
चलता रहेगा सब कुछ
अपनी गति से,
हर वो चीज़
जो हम देख सकते है
महसूस कर सकते है
उसकी आहट पा सकते है
वो
खर्च ही तों हो रही है
वो पुराने बचपन के दिन
वो खेल, वो परिवार, वो लोग,
वो घर, वो मोहल्ला, वो स्कूल,
वो साथी,
उनसब में बहुत कुछ छूट गया
तों बहुत कुछ बदल गया
मगर
कुछ भी तों पहले जैसा नहीं
रहा है ना,
और जो अभी है जितना भी
जैसा भी जिस किसी का भी
सब बदलेगा बल्कि बदल रहा है
सब कुछ क्षणिक है
और यहीं सत्य है
तों क्यों करें चिंता किसी
के जाने की!!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
पहले कभी
इतना जिर्ण-शीर्ण मैं
पहले तो कभी न था
बारिश आयी
धुप खिली
पतझड़ आया
ठंडी बयार चली
गर्म हवाओं ने सताया
दिन गुजरा
रात ढली
सब कुछ बदला
मगर
पहले कभी तुम इतने तो
न बदले थे
और न ही
पहले कभी
मैं इतना गुमशुम हुआ था!!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
रिश्ते
कितनी आसानी से टूट
जाते है रिश्ते
जिन्हें काफ़ी वक़्त लगता है
बनने में,
जिन्हें संजोयाँ जाता है
बड़े प्यार से
भावनाएँ सींची जाती है जिनमें
बहुत ही इत्मीनान से
कितने पल गुजरते है
कितनी यादे बनती है
सब कुछ इतना विशाल होता है
फ़िर क्षण भर में
कैसे धराशायी हो जाता है ?
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
मैं अकेला हूँ
इतने बड़े संसार में
सब कोई है जहाँ शुभचिंतक
मालूम नहीं क्यों फ़िर भी
मैं हूँ अकेला,
चारों तरफ भागदौड़ है
थमते नहीं है लोग
वहीं मैं रुका हुआ
अकेला क्यों हूँ,
सबकों कुछ न कुछ पाने
और बनाने कि चिंता है
मैं चिंतित हूँ कि
मैं अकेला क्यों हूँ,
माँ है, पिताजी है,
दादी जी है, दादाजी है
बहनें है उनके बच्चे है
भुआ है फूफा जी है
उनके बच्चे है और
उनके भी बच्चे है
सब है..
मगर मैं अकेला हूँ
यहाँ दूर, बहुत दूर जहाँ
सिर्फ़ मैं हूँ...सिर्फ़ मैं हूँ!!
नीरज 'थिंकर'
घर की याद किसको नहीं आती है !
घर की याद किसको नहीं आती है, चाहे घर घास-फुस का हो या फ़िर महलनुमा हो घर की याद किसको नहीं आती है, जहाँ माँ हर वक़्त राह देखती हो, पिता जहाँ ख़...
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