Friday 5 June 2020

धीरे चला हूँ मैं

मैं बहुत रुका हूँ
हरदम धीरे चला हूँ
तू कहीं छूट ना जाये
इसीलिए तो
रुक-रुककर चला हूँ मैं
तमाम उलझनो से निकल
तुझ पर ही आकर
टिका हूँ,
व्यस्त ज़िंदगी की
भाग-दौड़ में भी
हे,प्रिय
बहुत धीरे चला हूँ मैं !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर

घर की याद किसको नहीं आती है !

घर की याद किसको नहीं आती है, चाहे घर घास-फुस का हो या फ़िर महलनुमा हो घर की याद किसको नहीं आती है, जहाँ माँ हर वक़्त राह देखती हो, पिता जहाँ ख़...