अन्तर्मन से निकले शब्दों का सयोंग ही कविता का रूप है |
Friday 5 June 2020
धीरे चला हूँ मैं
मैं बहुत रुका हूँ हरदम धीरे चला हूँ तू कहीं छूट ना जाये इसीलिए तो रुक-रुककर चला हूँ मैं तमाम उलझनो से निकल तुझ पर ही आकर टिका हूँ, व्यस्त ज़िंदगी की भाग-दौड़ में भी हे,प्रिय बहुत धीरे चला हूँ मैं !! द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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