अन्तर्मन से निकले शब्दों का सयोंग ही कविता का रूप है |
Friday 21 September 2018
कविता - तुम एक कविता हो
तुम एक ख़ूबसूरत - सी
कविता हो माही, तुम्हारी आँखे अलंकार - सी चमकती है , तुम्हारे होंठ सौन्दर्य का भाव है माही , तुम्हारी चाल छंदों से लदी - सी चलती है , तुम्हारी बातें चाँद की उपमा-सी इठलाती है, तुम्हारी हँसी कविता का सार है माही | द्वारा- नीरज 'थिंकर'
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