Saturday 9 November 2019

कविता- बुद्धा तुम बहुत याद आते हो




इस क्षण में
बुद्धा तुम
बहुत याद आते हो,
चारो तरफ फ़ैले
तनाव में भी
तुम सुकून एक
दे जाते हो,
जब हर कोई
आतुर है
मारने एक-दूजे को
तब तुम ही
संयमता बरतना
सिखाते हो,
नफ़रतों की आँधियाँ
जब
सबकों उड़ायें जाती है
तब
तुम ही हो बुद्धा
जो मुझें बचाकर
लाते हो,
भीड़ का हिस्सा बनना
चाहूँ भी तो,
तुम
हर दफ़ा
अपनी शरण में
खींच लाते हो,
जो हो रहा है
बीत जायेगा
उन्मादों का भंवर
भी बिखरेगा
तुम्हारी नश्वरता की
यें बातें
हर वक़्त मुझें
उन्मादी होने से
बचाती है,
इस क्षण में
बुद्धा तुम
बहुत याद आते हो ||

द्वारा- नीरज 'थिंकर'

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