क्या तुम
रहकर भी
न मिल पाने का
दर्द जानते हो ?
सामने होने पर भी
गले न मिल पाने की
चाह को दबाने
की घुटन
क्या तुम महसूस
कर सकते हो ?
चंद फ़ासलों की
दूरी को
घंटों फोन पर
बतियाकर पूरी
करने की
नाकामयाब कोशिश
बार-बार करना,
फिर
एक आलिंगन की
चाह लिए
उसकी डगर चलना
अंततः झलक पाकर
ही
लौटकर आने का
गम
क्या तुम जानते हो ?
द्वारा- नीरज 'थिंकर'
Waah bhai waah
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