Tuesday 5 November 2019

कविता - क्या तुम जानते हो ?


क्या तुम 
एक शहर में 
रहकर भी 
न मिल पाने का 
दर्द जानते हो ?
सामने होने पर भी 
गले न मिल पाने की 
चाह को दबाने 
की घुटन 
क्या तुम महसूस 
कर सकते हो ?
चंद फ़ासलों की 
दूरी को 
घंटों फोन पर 
बतियाकर पूरी 
करने की 
नाकामयाब कोशिश 
बार-बार करना,
फिर 
एक आलिंगन की 
चाह लिए 
उसकी डगर चलना 
अंततः झलक पाकर 
ही 
लौटकर आने का 
गम 
क्या तुम जानते हो ?

द्वारा- नीरज 'थिंकर'

1 comment:

घर की याद किसको नहीं आती है !

घर की याद किसको नहीं आती है, चाहे घर घास-फुस का हो या फ़िर महलनुमा हो घर की याद किसको नहीं आती है, जहाँ माँ हर वक़्त राह देखती हो, पिता जहाँ ख़...