Sunday 27 March 2022

मेरी माँ जब रोटी पकाती है

Pic courtsey- Neeraj 'Thinker'
मेरी माँ जब

रोटी पकाती है,
ख़ुद जलकर
रोटी को जलने से
जब वो बचाती है
तब
वह सिर्फ़ रोटी नहीं
बचा रही होती है
वह बचा रही होती है
अपने पति के गुस्से को
वह मिटा रही होती है
अपने बेटे की भूख को
वो रसोई के अंदर
बचपन से जल रही है
मगर
जलते हुए खुरदरे हाथों
से जब वो
गर्म रोटी पर घी लगाती है
फ़िर थाली में परोसती है
तब उसका झुरियों वाला
चेहरा मुस्कुराता है
यें सोचकर कि
उसने अपना काम
बेखुबी निभा दिया है
वह पहले खेत में पसीना
बहाती है
गेहूँ कि फसल उगाती है,
उनको माँ की तरह पानी पिलाती है
उनमें खाद डालती है
जो उसने रोज इक्कठा
करके जमाया था,
फ़िर वो उसे रोज
आधी अधूरी रोटी खा कर
काटती है
कटे हुए गेहूँ की फसल को
घर लाती है
फ़िर उसमें से गेहूँ के दाने
अलग करती है
उन्हें धुप में सुखाती है
फ़िर उनको साफ करके
पिसती है
गेहूं के आटे को छलनी से छानकर
वो उसे गूंथथी है
फ़िर मेरी माँ उससे इतनी गोल
रोटी बनाती है कि
एक बार के लिए
आँखें भी धोखा खा जाए,
जुल्हे को जलाये रखने के
लिए वो ख़ुद जली
अपनी साँसो को उसमें फूंका
मगर उसने सबकी भूख
मिटाये रखा!!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Sunday 13 March 2022

क्या फ़िर से !!


क्या फ़िर से वो पल   
मुझें मिल पायेंगे?
जिसका मुझें 
बरसों से गुमान था,
तुम साथ थी
तुम्हारी आँखें रूबरू
मुझसे कुछ कहती थी,
किसी पार्क में बैठे हुए
तुम किसी फुल-सी
खिलतीं थी,
मेरा हाथ तुम्हारे हाथ में
होता था
ज़्यादा प्यार आने पर
मैं, तुम्हारे माथे को
चूम लिया करता था,
तमाम लोगों के बीच  भी
मुझें सिर्फ़ तुम ही नज़र
आती थी,
स्कूल कि चारदीवारी में
मैं, तुम्हें ही ढूंढता फिरता था
तुम्हारा दीदार हो जाने पर
मेरा शरीर
जलसा मनाया करता था,
जब भी मैं
परेशान हो जाता था 
तुम्हारी मुस्कान
सब कुछ भूला दिया करती थी,
वो सुनहरा वक़्त
भुलाये नहीं भूलता 
जब हमारा
प्यार और हम साथ में
जवां हो रहें थे,
तुम्हारी हर आवाज
हर अदा
जब मुझें तुम्हारी तरफ
खींच लेती थी
और मैं बड़ी मुश्किल से
लौट पाता था अपने वर्तमान में,
उन बातों को बीते चौदह बरस 
हो गए
मगर
सबकुछ ज्यों का त्यों
हूबहू याद है
जैसे कल की ही बात है,
क्या फिर से
तुम आओगी?
आकर मुस्कुरावोगी?
आँखों से बतियाओगी?
मेरे बुरे वक़्त में
मेरा हाथ थामोगी?
सब कुछ भूलकर
माथा चूमकर
क्या तुम मुझें गले लगाओगीं?

नीरज 'थिंकर'

घर की याद किसको नहीं आती है !

घर की याद किसको नहीं आती है, चाहे घर घास-फुस का हो या फ़िर महलनुमा हो घर की याद किसको नहीं आती है, जहाँ माँ हर वक़्त राह देखती हो, पिता जहाँ ख़...