Sunday 13 March 2022

क्या फ़िर से !!


क्या फ़िर से वो पल   
मुझें मिल पायेंगे?
जिसका मुझें 
बरसों से गुमान था,
तुम साथ थी
तुम्हारी आँखें रूबरू
मुझसे कुछ कहती थी,
किसी पार्क में बैठे हुए
तुम किसी फुल-सी
खिलतीं थी,
मेरा हाथ तुम्हारे हाथ में
होता था
ज़्यादा प्यार आने पर
मैं, तुम्हारे माथे को
चूम लिया करता था,
तमाम लोगों के बीच  भी
मुझें सिर्फ़ तुम ही नज़र
आती थी,
स्कूल कि चारदीवारी में
मैं, तुम्हें ही ढूंढता फिरता था
तुम्हारा दीदार हो जाने पर
मेरा शरीर
जलसा मनाया करता था,
जब भी मैं
परेशान हो जाता था 
तुम्हारी मुस्कान
सब कुछ भूला दिया करती थी,
वो सुनहरा वक़्त
भुलाये नहीं भूलता 
जब हमारा
प्यार और हम साथ में
जवां हो रहें थे,
तुम्हारी हर आवाज
हर अदा
जब मुझें तुम्हारी तरफ
खींच लेती थी
और मैं बड़ी मुश्किल से
लौट पाता था अपने वर्तमान में,
उन बातों को बीते चौदह बरस 
हो गए
मगर
सबकुछ ज्यों का त्यों
हूबहू याद है
जैसे कल की ही बात है,
क्या फिर से
तुम आओगी?
आकर मुस्कुरावोगी?
आँखों से बतियाओगी?
मेरे बुरे वक़्त में
मेरा हाथ थामोगी?
सब कुछ भूलकर
माथा चूमकर
क्या तुम मुझें गले लगाओगीं?

नीरज 'थिंकर'

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