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मज़बूत हो,
ख़ुद से कर प्रेम
आँखो के धोके से
बाहर निकल तू,
भावनाओं के झंजाल से
काल्पनिक संसार से
नाता तोड़ तू,
बारिश के प्रेम को भूल तू
ख़्वाबों के महल को
तोड़ तू ,
ज़िन्दगी की हक़ीक़त को
पहचान तू ,
ज़ुल्फ़ों की छांव को
आँखों के महताब को
और
यौवन के आँचल को
छोड़ तू,
अग्नि में जल
बन ज्वाला तू !!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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