Tuesday 18 January 2022

अतीत कि बातें

 भीड़ से नजरें चुराकर

जब मैं तुम्हारा

हाथ थाम कर चलता था

बेखबर हो दुनिया से जब

मैं तुमको बाहों में भरता था

अनगिनत बातों का कारवाँ 

जब तुम्हें देखते हुए बढ़ता था

तुम्हारी आँखें बिन बोले ही

बहुत कुछ कहती थी जब

इन्हीं सब सिलसिलों के बीच

हम जब बिछड़ते थे

आँखें दोनों की नम होकर

कुछ न ज़ब कह पाती थी

दो विपरीत दिशाओं में मुड़कर

जब हम एक दूसरे की नजरों से

गायब हो जाते थे

मैं अपनी मंज़िल पर पहुंचने तक

तुझको ही सोचता रहता था

और तू जब अपनी मंज़िल पहुंच कर

उन साथ बिताये पलों को याद करते हुए

कहती थी 'वापस कब आओगे, मिलने,

इन सब लम्हों को दौहराने ".

तब मैं तुम्हें एक आश्वासन देता था

फ़िर से मिलने का,

मगर यें सब अब

एक अतीत बन चूका है

एक ख़्वाब जो हुआ है पूरा कभी

मगर अधूरा है जो शायद फ़िर कभी

मुक़म्मल होगा नहीं!!


द्वारा - नीरज 'थिंकर'

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