Friday 8 May 2020

चलते-चलते चले जाएंगे

चलतें-चलतें घर  
पहुंच जाएंगें
पांवों के छाले भी 
सह जाएंगें 
हाथ में दो रोटी 
बांध बग़ल में 
गठरी 
हम चले जाएंगें,
हम रोएंगें
हम गिड़गिड़ाएंगें 
फ़िर भी
यें सरकार जो 
न सुनेगी तो 
हम चलते-चलते ही
चले जाएँगें,
हम हर शहर में 
हर चौराह पर 
अपना दर्द बताएंगें 
फ़िर भी 
पुलिस जो डंडें मारेगी 
तो 
हम उस दर्द को भी 
सहते-सहते 
चले जाएंगें,
घर पहुँचनें की आस लिए 
बच्चों को ढाँढ़स बंधाएं 
सूखी रोटी खाते-खाते 
हम चले जाएंगें,
राह जो हम भटकेंगें 
तो 
सूनी-सूनी पटरियों को 
राह बनाकर
हम चले जाएंगें
थकेंगें जो ग़र कहीं तो 
उन्हीं पटरियों पर 
हम सो जाएंगें,
हम चलते-चलते 
चले जाएंगें !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 







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