पहुंच जाएंगें
पांवों के छाले भी
सह जाएंगें
हाथ में दो रोटी
बांध बग़ल में
गठरी
हम चले जाएंगें,
हम रोएंगें
हम गिड़गिड़ाएंगें
फ़िर भी
यें सरकार जो
न सुनेगी तो
हम चलते-चलते ही
चले जाएँगें,
हम हर शहर में
हर चौराह पर
अपना दर्द बताएंगें
फ़िर भी
पुलिस जो डंडें मारेगी
तो
हम उस दर्द को भी
सहते-सहते
चले जाएंगें,
घर पहुँचनें की आस लिए
बच्चों को ढाँढ़स बंधाएं
सूखी रोटी खाते-खाते
हम चले जाएंगें,
राह जो हम भटकेंगें
तो
सूनी-सूनी पटरियों को
राह बनाकर
हम चले जाएंगें
थकेंगें जो ग़र कहीं तो
उन्हीं पटरियों पर
हम सो जाएंगें,
हम चलते-चलते
चले जाएंगें !!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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