अन्तर्मन से निकले शब्दों का सयोंग ही कविता का रूप है |
Monday 18 May 2020
पल -पल टूटना
हर रोज़,हर पल टूटता हूँ, टूट कर ,फिर से जुड़ने की कोशिश में बार-बार टूटता हूँ, कभी-कभी सोचता हूँ, टूटा ही रहूँ, पर सबकुछ भूल एक नयी राह बनाने की सोच, थोड़ा चलता हूँ, इसी बीच कुछ देख ठिठक जाता हूँ, कुछ सोच पुनः टूटता हूँ !! द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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