Monday 27 April 2020

भीड़तंत्र

भीड़ का कोई नाम
नहीं होता है
यें गुमनाम-सी
आती है
और
एक दंगे-सी 
फ़ैल जाती है,
धर्मे के ठेकेदार
हिंदू-मुस्लिम
करते रह जाते है
और यें भीड़
जात-धर्म देखे
बिना ही
किसी निर्दोष
की जान लेकर
बेखौफ होकर
चली जाती है,
प्रशासन मूक दर्शक
बनकर
रह जाता है
और नेता
एक-दूजे पर
दोष मढ़ते-मढ़ते
एक नया मुद्दा
गढ़ जाते है
तब तक
एक और भीड़
तैयार हो जाती है
और
यें सिलसिला यूँ ही
चलता रहता है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


जब लॉकडाउन खत्म हो जायेगा

जब
लॉकडाउन खत्म हो जायेगा
और
सब कुछ
शने:शने: से ठीक हो जायेगा
तब
मैं तुमसे फिर मिलूंगा
उसी पुराने बाग़ में
जहाँ
हम पहली दफ़ा मिले थे
बारिश में भीगे थे
माली की डांट सुनकर
भागे भी थे,
हम फिर चलेंगे उसी सिनेमाघर में
जहाँ
हमने साथ में पहली बार
फ़िल्म देखी थी,
हम फिर से रात के अँधेरे में
उजाला फैलाने साथ चलेंगे
हर ग़म को हम उस रात में
बाँट चलेंगे,
हम फिर जाएंगे उस नदी के किनारे
और बुन आएंगे ख्वाब
जो पिछली दफ़ा रह गए थे
आधे-अधूरे,
जब
सब कुछ सामान्य हो जायेगा
तब
मैं फिर आऊंगा
तुम्हारे संग कहीं दूर चलने के लिए
एक नयी उड़ान भरने के लिए !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर'


 

Saturday 25 April 2020

सर्द रातों में

सर्द रातों में
खुलें आसमॉ के नीचे
तारों को गिनते हुए
उसकी उस बेशक़ीमती
मुस्कान को
याद करते हुए,
एक रात की चाह में
जिसमें बग़ल में बैठ
उसके,
ज़ुल्फ़ों से झाँकती हँसी
को थामें
सब कुछ क़ुर्बान करने
को तैयार
सिर्फ़ उस सुनहरे पल
के लिए
मैं उसकी अप्रितम याद में
उसके आग़ोश में खोने को
टकटकी लगायें
उसकी सोच में डूबा-सा
अनगिनत ख़यालों में

खोया हुआ हूँ !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

Friday 24 April 2020

सूर्य की किरणें और तुम्हारी हंसी


तुम्हारी हंसी
सूर्य की किरणों
की माफ़िक
शुद्ध व सुन्दर है,
जब भी यें किरणे
खिड़की से होती हुयी
मेरे चेहरे पर आती है
तब सिर्फ़
तुम्हारी हंसी
याद आती है,
जैसे सूर्य की किरणे
छनकर सुनहरी
हो जाती है
बिलकुल वैसे ही
तुम्हारी हंसी भी
जुल्फों से छनकर
और अधिक
मनोरम हो जाती है,
किरणों की भांति
तुम्हारी हंसी
ऊर्जा का संचार
तो करती ही है
पर यें मुझमें
एक नयी जान भी
भरती है,
सच कहूं तो माही
तुम्हारी हंसी
हर ख्वाब पूरा करने की
ताकत रखती है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Thursday 9 April 2020

विरह में

जगमगाते तारों की 
रात में 
अंधेरा हूं मैं,
सब कुछ पास 
होने पर भी 
अधूरा हूं मैं,
बीते अनगिनत 
किस्सों का 
एक किस्सा हूँ मैं,
पतझड़ के मौसम में 
दरख्तों से टूटता हुआ 
एक पत्ता हूं मैं,
सुनहली रातों का 
एक बुझता-सा 
दिया हूँ मैं,
मंज़िल की ओर 
निकला 
एक भटका राही हूँ मैं,
एक बंधन में बंधा 
आज़ाद परिंदा हूं मैं,
और 
आने वाले कल के
इंतजार में
रुका हुआ आज हूं मैं,
सुलझी हुयी कहानियों का 
एक अनसुलझा पात्र हूँ मैं,
किसी के ख्वाबो की 
लम्बी रात हूं मैं,
अलसायें सपनों का 
एक आधा-सा 
स्वप्न हूँ मैं,
भीड़ में भी  
हाँ ,भीड़ में भी 
अकेला हूँ मैं -2 



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Sunday 5 April 2020

एक कसक

एक कसक मन में रह गयी                                  
बिन मिले ही ये रात ढल गयी,
हंसीं जो खिलखिला रही थी
पास मेरे
बिन कुछ कहे ही चली गयी,
होंठ जो कहने वाले थे
कुछ बात तेरे
बिन बात किए ही
सिल गये,
आँखें जो करने वाली थी
नजाकत साथ मेरे
ना जाने क्या बात थी कि
बिन कुछ करे ही
सो गयी,
ये रात ना जाने क्यों प्यारे
बिना उसके आलिंगन के ही
सुबह में हो गयी,
एक कसक थी जो मन में प्यारे
मन में ही रह गयी ||

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

तू कह दे तो

तू कह दे तो                  
तेरी आँखों का बन मैं काजल
तेरी आँखों में बस जाऊं
तुझको सवारू
तुझको निहारूं,

तू कह दे तो
तेरे गले का बन हार
तेरे दिल के करीब हो मैं जाऊं
तुझको श्रृंगारु
तुझको महकाऊं

तू कह दे तो
तेरी हाथो की बन मैं चूड़ियाँ
खनकूं
एक संगीत बनकर मैं
तेरे कानों में चहकूं,

तू कह दे तो
बनकर तितली मैं
तेरे पास उड़ता ही रहूँ
बनकर भंवरा
मंडराता फिरूँ
लाकर फुलों की सारी खुशबू
तुझ पर मैं उड़ेलूँ
तू कह दे तो .........----

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Wednesday 1 April 2020

तुम मेरे लिए काफ़ी हो

तुम्हारा मेरे पास    
बैठकर 
मुझे निहारना 
समुन्द्र की 
लहरों में 
मेरा हाथ थाम कर 
चलना 
मेरे लिए काफ़ी है,
पथरीली राहों में 
नीले गगन के नीचे 
सुनसान सड़क पर 
तुम्हारा साथ होना 
काफ़ी है,
हर मुश्किल घड़ी में 
तुम्हारा हल्का-सा 
मुस्कुरा जाना 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम कहीं भी रहो 
पर 
पास होने का एक 
एहसास तुम्हारा 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा बेझिझक होकर 
मुझसे बाते करना 
और 
बातों ही बातोँ में 
मुझे गले लगाना 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा चेहरा 
हर परेशानी जो 
मेरी हर लेता है
और 
मेरे ग़मों को 
खुशियों में जो 
बदल देता है 
मेरे लिए काफ़ी है,
ज़माना हो भले ही 
ख़िलाफ़ मेरे 
तो होने दो
सब कुछ लुट जाए 
मेरा मुझसे तो 
लुट जाने दो 
तुम साथ हो 
मेरे लिए
इतना ही काफ़ी है -2

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

कोरोना काल में

Pic courtesy - Scroll.in
जब भटक रहा है 
इंसान दर-ब-दर 
तब तुम 
हाथ धोना उसे 
सीखा रहें हो,
है नहीं घर 
पास उसके 
फिर भी 
तुम उसे घर बैठना 
सीखा रहें हो,
वर्षों से झेली है 
'सामाजिक दूरी' 
जिसने, उसे तुम 
'सोशल डिस्टैन्सिंग' 
सीखा रहें हो ,
भूखा है पेट
बिलख़ रहें है बच्चे 
और 
तुम उसे डंडे की 
मार से डरा रहें हो,
अपने ही देश में 
लोग जब बेघर 
हो जाए
महामारी से ज्यादा 
भूख जब उन्हें 
सताने लगे,
तब तुम नाप 
सकते हो 
देश की तररकी 
और 
देख सकते हो 
विकास को करीब से
बहुत करीब से !!



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

घर की याद किसको नहीं आती है !

घर की याद किसको नहीं आती है, चाहे घर घास-फुस का हो या फ़िर महलनुमा हो घर की याद किसको नहीं आती है, जहाँ माँ हर वक़्त राह देखती हो, पिता जहाँ ख़...