Thursday 9 April 2020

विरह में

जगमगाते तारों की 
रात में 
अंधेरा हूं मैं,
सब कुछ पास 
होने पर भी 
अधूरा हूं मैं,
बीते अनगिनत 
किस्सों का 
एक किस्सा हूँ मैं,
पतझड़ के मौसम में 
दरख्तों से टूटता हुआ 
एक पत्ता हूं मैं,
सुनहली रातों का 
एक बुझता-सा 
दिया हूँ मैं,
मंज़िल की ओर 
निकला 
एक भटका राही हूँ मैं,
एक बंधन में बंधा 
आज़ाद परिंदा हूं मैं,
और 
आने वाले कल के
इंतजार में
रुका हुआ आज हूं मैं,
सुलझी हुयी कहानियों का 
एक अनसुलझा पात्र हूँ मैं,
किसी के ख्वाबो की 
लम्बी रात हूं मैं,
अलसायें सपनों का 
एक आधा-सा 
स्वप्न हूँ मैं,
भीड़ में भी  
हाँ ,भीड़ में भी 
अकेला हूँ मैं -2 



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

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