Saturday 25 April 2020

सर्द रातों में

सर्द रातों में
खुलें आसमॉ के नीचे
तारों को गिनते हुए
उसकी उस बेशक़ीमती
मुस्कान को
याद करते हुए,
एक रात की चाह में
जिसमें बग़ल में बैठ
उसके,
ज़ुल्फ़ों से झाँकती हँसी
को थामें
सब कुछ क़ुर्बान करने
को तैयार
सिर्फ़ उस सुनहरे पल
के लिए
मैं उसकी अप्रितम याद में
उसके आग़ोश में खोने को
टकटकी लगायें
उसकी सोच में डूबा-सा
अनगिनत ख़यालों में

खोया हुआ हूँ !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

No comments:

Post a Comment

क्या कहूँ मैं ?

क्या कहूँ मैं ? वो बात   जो   मैं कह न सका , वो बात   जो   वो भूल गयी , वो रात   जो   बीत गयी , वो नींद   जो   खुल...