तुम्हारा मेरे पास
समुन्द्र की
लहरों में
मेरा हाथ थाम कर
चलना
मेरे लिए काफ़ी है,
पथरीली राहों में
नीले गगन के नीचे
सुनसान सड़क पर
तुम्हारा साथ होना
काफ़ी है,
हर मुश्किल घड़ी में
तुम्हारा हल्का-सा
मुस्कुरा जाना
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम कहीं भी रहो
पर
पास होने का एक
एहसास तुम्हारा
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा बेझिझक होकर
मुझसे बाते करना
और
बातों ही बातोँ में
मुझे गले लगाना
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा चेहरा
हर परेशानी जो
मेरी हर लेता है
और
मेरे ग़मों को
खुशियों में जो
बदल देता है
मेरे लिए काफ़ी है,
ज़माना हो भले ही
ख़िलाफ़ मेरे
तो होने दो
सब कुछ लुट जाए
मेरा मुझसे तो
लुट जाने दो
तुम साथ हो
मेरे लिए
इतना ही काफ़ी है -2
द्वारा- नीरज 'थिंकर'
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