Saturday, 20 July 2024

कविता- तुम ही संविधान

संविधान गया भाड़ में 
संविधान की बात तुम 
करो मत ,
संघवाद ,मनुवाद ,हिन्दुवाद 
और 
इस्लामवाद फैलाओ तुम 
अनेकता में एकता का 
सन्देश तुम देवो मत ,
अल्लाह को सुनाओ तुम 
लाऊडस्पीकर लगाकर 
भगवान को दिखाओ तुम 
भगवा लहराकर ,
संविधान की मूल भावना को 
ठेस पहुँचाओ तुम 
फरमान करके जारी 
छीन लो अधिकारों को तुम ,
तुम ही तो संविधान हो 
तुम ही तो महान हो 
बाकि सब तो बेकार है 
तुम्हारी ही तो 
जय - जयकार है ,
बाकि सब तो झूठा है 
तुम ही तो 
सत्य के प्रतिक हो ...

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