कितना सुकून भरा होता
होगा ना घर जाना
घर जाते हुए
तमाम लोगों को देखना
बीच में पड़ने वाले शहर
एवं गाँवों से गुजरना ,
खेत-खलिहानों में चरती हुयी
गाय-भैसों एवं पेड़ कि छाँव में
बैठकर खाना खाते हुए
लोगों को निहारना,
हर बस स्टैंड पर खाने-पीने
के सामान बेचते हुए
लोगों को गला फाड़ कर
चिल्लाते हुए सुनना,
बस में सहयात्रियों के
किस्से सुनना,
किसी को फ़ोन पर
जोर-जोर से अपने घर- परिवार
कि बातें करते हुए सुनना और
सुनते हुए अपने परिवार को
याद करना,
कितना सुकून देता होगा ना
घर जाना!
मगर कितने लोग घर जा पाते
होंगे?
और
कितने लोग सपना देखते
होंगे घर जाने का?
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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