Sunday 16 January 2022

अस्थिर सब

 जब सब कुछ ही

ख़तम हुआ जा रहा है

हर क्षण,

तों क्यों करें चिंता

कि

क्या बचेगा, क्या मिलेगा

क्या रहेगा?

जब दूरी तुम्हारी और मेरी

हर पल, निरंतर बढ़ती ही

जा रही है

तों फ़िर क्यों जाने से रोकने

कि असफल कोशिश करें

क्योंकि यहाँ कुछ भी तों

रुकेगा नहीं, कुछ भी तों

ठहरेगा नहीं

चलता रहेगा सब कुछ

अपनी गति से,

हर वो चीज़

जो हम देख सकते है

महसूस कर सकते है

उसकी आहट पा सकते है

वो

खर्च ही तों हो रही है

वो पुराने बचपन के दिन

वो खेल, वो परिवार, वो लोग,

वो घर, वो मोहल्ला, वो स्कूल,

वो साथी,

उनसब में बहुत कुछ छूट गया 

तों बहुत कुछ बदल गया 

मगर

कुछ भी तों पहले जैसा नहीं

रहा है ना,

और जो अभी है जितना भी

जैसा भी जिस किसी का भी

सब बदलेगा बल्कि बदल रहा है

सब कुछ क्षणिक है

और यहीं सत्य है

तों क्यों करें चिंता किसी

के जाने की!!


द्वारा - नीरज 'थिंकर'

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