कितनी आसानी से टूट
जाते है रिश्ते
जिन्हें काफ़ी वक़्त लगता है
बनने में,
जिन्हें संजोयाँ जाता है
बड़े प्यार से
भावनाएँ सींची जाती है जिनमें
बहुत ही इत्मीनान से
कितने पल गुजरते है
कितनी यादे बनती है
सब कुछ इतना विशाल होता है
फ़िर क्षण भर में
कैसे धराशायी हो जाता है ?
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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