अन्तर्मन से निकले शब्दों का सयोंग ही कविता का रूप है |
इतना जिर्ण-शीर्ण मैं
पहले तो कभी न था
बारिश आयी
धुप खिली
पतझड़ आया
ठंडी बयार चली
गर्म हवाओं ने सताया
दिन गुजरा
रात ढली
सब कुछ बदला
मगर
पहले कभी तुम इतने तो
न बदले थे
और न ही
पहले कभी
मैं इतना गुमशुम हुआ था!!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
घर की याद किसको नहीं आती है, चाहे घर घास-फुस का हो या फ़िर महलनुमा हो घर की याद किसको नहीं आती है, जहाँ माँ हर वक़्त राह देखती हो, पिता जहाँ ख़...
No comments:
Post a Comment