तुम्हारे संग वादियों में
कहीं खो जाने की
तमन्ना रहने दे
कि जाने दे ?
कुछ बेहतर क़िस्से
और
साथ बीते पलों को
धूमिल कर
बढ़ चले
कि जाने दे ?
दोनो के बदन की
ख़ुश्बू से नहायीं
बहती हवा को
रोक ले कि जाने दे ?
मिलकर फिर से
वो लम्हे दोहरायें
लड़ाईयों का ,
और
फिर एक-दूजे को
मनाने का
वो दौर फिर से लाये
कि जाने दे ?
अलसाए ख्वाबों को
जगाएं
कि जाने दे ?
अलसाए ख्वाबों को
जगाएं
कि जाने दे ?
छूने का वो एहसास
जो निर्मित करता है
एक नया संसार
उसे थाम ले
कि जाने दे ?
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
साथी 'नीरज की कविता' समकालीन परीपेक्ष में, सही मायनो में जमीन की कविता है !
ReplyDeleteशुभकामनाये…
बहुत बहुत धन्यवाद कुनाल भाई आपकी शुभकामनाओ के लिए |
DeleteNice lines...
ReplyDeletethanks bhai
Delete😊😊
ReplyDelete😊😊
ReplyDelete😊😊
ReplyDelete😊😊
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ReplyDeleteNeeraj Bhai bahut khoob!
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