Tuesday 21 November 2017

कविता - कि जाने दे ?


                                                    
तुम्हारे संग वादियों में
कहीं खो जाने की
तमन्ना रहने दे 
कि जाने दे ?
कुछ बेहतर क़िस्से
और
साथ बीते पलों को
धूमिल कर 
बढ़ चले
कि जाने दे ?
दोनो के बदन की
ख़ुश्बू से नहायीं 
 बहती हवा को
रोक ले कि जाने दे ?
मिलकर फिर से 
वो लम्हे दोहरायें 
लड़ाईयों का ,
और 
फिर एक-दूजे को 
मनाने का 
वो दौर फिर से लाये
कि जाने दे ?
अलसाए ख्वाबों को 
जगाएं
 कि जाने दे ?
छूने का वो एहसास
जो निर्मित करता है
एक नया संसार 
उसे थाम ले 
कि जाने दे ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


11 comments:

  1. साथी 'नीरज की कविता' समकालीन परीपेक्ष में, सही मायनो में जमीन की कविता है !
    शुभकामनाये…

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुनाल भाई आपकी शुभकामनाओ के लिए |

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