Friday 24 November 2017

कविता - मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी
अपार्टमेंट-सी 
हुए जा रही है
कुछ गज़ के 
कमरें में,
सपनों को लिये
केद हुए
जा रही है ,
सोचा ख़्वाबों को
लगा पर
उड़ाऊँगा ,
झरनो़ के क़रीब
ले जा कर
तरु की फुनगी
पर इनको झूलाउँगा
पर 
ख़्वाबों का यूँ
धूमिल हो जाना
इनका यू
चारदीवारी में केद 
हो जाना,
प्राणमन का 
हर जाना-सा लगता है ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

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