मेरी ज़िन्दगी
अपार्टमेंट-सी
हुए जा रही है
कुछ गज़ के
कमरें में,
सपनों को लिये
केद हुए
जा रही है ,
सोचा ख़्वाबों को
लगा पर
उड़ाऊँगा ,
झरनो़ के क़रीब
ले जा कर
तरु की फुनगी
पर इनको झूलाउँगा
पर
ख़्वाबों का यूँ
धूमिल हो जाना
इनका यू
चारदीवारी में केद
हो जाना,
प्राणमन का
हर जाना-सा लगता है ।
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
👌👌
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