Thursday 30 November 2017

कविता - तू चल

तू चल 
मैं भी चलूँ 
तेरे साथ,
रुकेंगे न तब तक 
जब तक होगी न शाम, 
छाएगी न तब तक 
काली घनघोर अँधेरी रात, 
चलते ही जायेंगे 
बिना रुके बे बात 
छोड़ के सारा संसार ,
पेड़ो की झुरमुट व
आधी- अधूरी छांव में 
चलते ही रहेंगे 
गुनगुनाते ही रहेंगे ,
तेरे पीछे-पीछे
 चलता ही जाऊंगा 
जब तक तू न थकेगी 
मैं भी न थकुंगा,
मेरे पांव चल पड़ेंगे 
अपने आप ,
तू चल 
मैं भी चलू 
तेरे साथ |

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


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