Wednesday 22 November 2017

कविता - कितना कुछ



कितना कुछ बदल 
रहा है ना
इस जहाँ में,
रिश्तों का अर्थ 
तो 
कभी रिश्ते ही,
संवेदनाएँ अपनी जगह
छोड़ रही है
तो 
कभी लोग ही,
आँसुओं का अर्थ 
बदल रहा है 
तो 
कभी आँखों के नज़ारे,
हँसी भी अपना असर
छोड़ रही है,
तो 
कभी हँसी से 
लिपटे ख़्वाबो के सितारे ।


द्वारा - नीरज 'थिंकर'

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