Saturday 20 July 2024

तृष्णा

जिस दिन उसे देखा था
सोचा
अब और क्या चाहिए ?
सोचा
अब हर दिन मुलाक़ात होगी !
सोचा
अब हर दिन नयी बात होगी !
सोचा
अब मैं किसी प्रेम कथा वाले उपन्यास का
पात्र बनूँगा
हर रोज नए प्रेम प्रसंग गढ़ूंगा
सोचा
अब हर रोज प्यार की बरसात होगी
पर
यह क्या ?
यह सब तो
महज़ एक सोच थी !
एक कल्पना थी
यह सब तो बस
मेरी असीमित इच्छाओं से निर्मित खवाब था ||

द्वारा- नीरज 'थिंकर'

No comments:

Post a Comment

क्या कहूँ मैं ?

क्या कहूँ मैं ? वो बात   जो   मैं कह न सका , वो बात   जो   वो भूल गयी , वो रात   जो   बीत गयी , वो नींद   जो   खुल...