अन्तर्मन से निकले शब्दों का सयोंग ही कविता का रूप है |
Thursday 25 July 2024
फ़क़त तुम हो
फ़क़त तुम हो माही मेरे आगे मेरे पीछे मेरे सपनों मेरे जज़्बातों में फ़क़त तुम हो माही, मेरे क़िस्से, कहानियों में मेरी निद्रापूरित आँखों में मेरे कमरे के ख़ालीपन में मेरे दिल के एकांत में मेरी खिड़कीं से दिखते नज़ारों में मेरी हर नज़र में फ़क़त तुम हो माही, मेरी आँख की कोर से निकले आंसू में ज़ुबाँ पर आये हर लफ़्ज़ में मेरे हर हरूफ में फ़क़त तुम हो माही, पंछियों की उड़ान में नदी की धार में पेड़ों की छाँव में रेगिस्तान की रेत में बर्फीले पर्वत-पहाड़ों में सर्द-ठिठुरती रातों में फ़क़त तुम हो माही, बसंत में खिले फूलों की महक में चिड़ियों की चहक में बीते पलों में मौजूदा हाल में आने वाले कल में तुम ही तुम हो फ़कत तुम हो माही !! ----नीरज माही
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