Thursday 10 December 2020

मानवाधिकार दिवस और तुम

इस मानव अधिकारों के
दिवस पर
मैं भी अपने कुछ अधिकारों को
सुनिश्चित करना चाहता हूँ,
तुझको अनिमेश देख
तुझमें ही खोना चाहता हूँ,
तेरे चेहरे की
शिकन में छुपी सुंदरता को
पाना चाहता हूँ,
हर पल तेरे साथ हो
जीने का अधिकार चाहता हूँ,
तेरी आँखों में छुपी हँसी को
हरदम साथ ले ,
आजीविका का अधिकार चाहता हूँ
तेरी घनी घुंघराली ज़ुल्फ़ों में
आवास का अधिकार पाना चाहता हूँ ,
तेरी आँखों में
खो जाने की स्वतंत्रता का
अधिकार चाहता हूँ,
तू यूँ ही हँसती रहे
ख़्वाब आँखों में तेरी
ऊँची उड़ान भरने के
यूँ ही पलते रहे
और
जीने की ख़्वाहिश मुझमें
यूँ ही हर दम तू भरती रहे
और
मानव दिवस हर दम
मुझे तुझ-सा दिखता रहे ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Saturday 10 October 2020

मेरी दादी

Creator: John Gordon
मेरी दादी
एक ही साँस में
बिना रुके, बिना थके
सांसों को रोके
सब कुछ कह देना
चाहती है,
क्योंकि उसे मालूम है
मैं, कम वक़्त के लिए
ही गाँव आता हूँ
और
वो उसी कम वक़्त में
सुना देती है 
इंदिरा गाँधी की हत्या 
से गाँव में छाए मातम 
का द्रश्य,
ऊंट पर गाँव में 
आने वाली पुलिस के
रौब ज़माने वाली बातें,
उसके पिता, माँ 
और भाइयों के मरने की 
आँखों देखी घटनाएँ 
वह साथ में रोतीं भी
जाती है,
हर बार
जब भी मिलता हूँ
दादी से
वो ही कहानियां, घटनाएँ
बिना किसी बदलाव के
वो हर बार सुनाती है मुझे
एक ही साँस में !!


द्वारा- नीरज 'थिंकर'

Friday 5 June 2020

धीरे चला हूँ मैं

मैं बहुत रुका हूँ
हरदम धीरे चला हूँ
तू कहीं छूट ना जाये
इसीलिए तो
रुक-रुककर चला हूँ मैं
तमाम उलझनो से निकल
तुझ पर ही आकर
टिका हूँ,
व्यस्त ज़िंदगी की
भाग-दौड़ में भी
हे,प्रिय
बहुत धीरे चला हूँ मैं !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर

Friday 29 May 2020

पत्थर बन तू

पत्थर बन तू
मज़बूत हो,
ख़ुद से कर प्रेम
आँखो के धोके से
बाहर निकल तू,
भावनाओं के झंजाल से
काल्पनिक संसार से
नाता तोड़ तू,
बारिश के प्रेम को भूल तू
ख़्वाबों के महल को
तोड़ तू ,
ज़िन्दगी की हक़ीक़त को
पहचान तू ,
ज़ुल्फ़ों की छांव को
आँखों के महताब को
और
यौवन के आँचल को
छोड़ तू,
अग्नि में जल
बन ज्वाला तू !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Monday 18 May 2020

पल -पल टूटना

हर रोज़,हर पल   
टूटता हूँ,
टूट कर ,फिर से
जुड़ने की कोशिश में
बार-बार टूटता हूँ,
कभी-कभी
सोचता हूँ,
टूटा ही रहूँ,
पर
सबकुछ भूल
एक नयी राह
बनाने की सोच,
थोड़ा चलता हूँ,
इसी बीच
कुछ देख
ठिठक जाता हूँ,
कुछ सोच
पुनः टूटता हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

हदों के पार वाला प्रेम

हम उम्र के न होने  
पर भी,
उनका आपस में प्यार 
करना 
जुर्म साबित हुआ,
समाज के ताने तो
मिले ही,
हर वक़्त डर बना रहा
घर वालों को
पता चलने पर घर से
निकाले जाने का
इसीलिए शायद वो
हर वक़्त उसका
हाथ पकड़े रहती है
ताकि तमाम जुमलों
को भूल
वो
सुरक्षित महसूस
कर सके उसके हाथों में  !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Thursday 14 May 2020

धर्म एक अफीम है

Pic Courtsey- googleविचारों व तर्कों का
जब तुम सामना जो
नहीं कर पाओगे
तब तुम
धारदार हथियार व बंदूके
लेकर  आओगे,
कोई जो करेगा सवाल

होगा गर जो असहमत
तुमसे
वहीं उसे तुम
मार डालोगे,
मरी गायों को
जब कोई घसीटकर
ले जायेगा,
तब गौभक्ति तुम्हारी
जागेगी
और गौगुंडे बन कर
तुम आ जाओगे,
मानवता को शर्मसार
कर दे जो
हर वो कृत्य
खुलेआम तुम कर जाओगे,
समरसता के नाम पर
दलितों व आदिवासियों
को हिन्दू बनाकर
भाषणों में,
जब तुम सत्ता पर काबिज
हो जाओगे
तब तुम
हिन्दूराष्ट्र बनाने को
इन्हीं दलित-आदिवासियों
का सबसे पहले
कत्लेआम करोगे,
रोजगार जो
कोई मांगेगा
भूखे पेट जो
कोई बिलखेगा
उस वक़्त
उन्हें तुम
राम लल्ला
याद दिलाओगे -2 !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Sunday 10 May 2020

बिन माँ के

माँ की मृत्यु के बाद       
क्या हालत होगी उस बच्चे की 
छोड़ चली दामन जिसकी अपनी प्यारी माँ 
प्यार भी न मिला होगा, आँचल का सुख भी 
न भोग पाया होगा,
तब अचानक
चल बसी होगी जिसकी स्नेहशीलमयी माँ

हो गया होगा बेसहारा बेचारा, नहीं रहा होगा 
जिसका कोई सहारा
रोता होगा दिनभर माँ की याद में अपनी 
लेकिन 
मिला न होगा आंसू पोंछने वाला कोई सहारा,
पुकारता होगा माँ को अपनी जहाँ में सारे 
मिली न होगी लेकिन उसकी अपनी माँ

नयी माँ आयी भी होगी
 तो
बन न सकी होगी उसकी माँ 
दे न सकी होगी अपनी माँ-सा प्यार
फ़िर वे बेचारा पुकारने लगा होगा 
अपनी माँ को फ़िर से आज 

कितनी मुश्किल से बढ़ रहा होगा 
शरीर उसका अपनी माँ की याद में 
कट रहा होगा,
फ़िर भी वह इस दुनिया में
तमाम मुश्किलों का सामना कर रहा होगा,

माँ की ममता से अधूरा उसका जीवन 
कैसे कट रहा होगा ?
माँ के आँचल में सोने का
मन उसका भी तो हो रहा होगा !!
माँ के पैर छूने का दिल 
उसका भी तो करता होगा !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 



भैंस और मेरी माँ

मेरी माँ की सांसें 
उसकी भैंस में 
बसतीं थी,
मेरी माँ की भैंस 
कुछ दिन पहले ही
मर गयी,
माँ हर वक़्त रोतीं 
रहतीं है,
भैंस ने मरने से
कुछ दिन पहलें
एक बछड़े को 
जन्मा था,
माँ उसे हर वक़्त 
दुलारती है,
उसकी माँ तो लौटा
नहीं सकतीं है
पर 
उसे उसकी माँ-सा
प्यार-दुलार देने की
कोशिश करती रहती है
मेरी माँ 
हर वक़्त
भैंस के साथ बितायें 
पलों में
खोयीं-सी रहतीं है



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Friday 8 May 2020

मैं जानता हूँ

मैं जानता हूँ  
कि 
तुम नहीं आओगी            
फ़िर भी 
हर सुबह दरवाजे पर 
तुम्हारी ही राह तकता हूँ,
आने-जाने वाले 
हर शख्स से 
तुम्हारी ही बातें करता हूँ,
अरसा बीत गया मिले हुए 
पर 
लगता है जैसे 
अभी-अभी गए हो मिलके,
जानता हूँ 
भुला दिया है तुमने मुझें 
फ़िर भी
तुम्हारे लौट आने की 
हर वक़्त आँखों में 
एक आस लिए फिरता हूँ,
तुम्हारी शरारतें याद करके
हर रोज दिल को 
खुशनुमा मैं करता हूँ 
जानता हूँ तुम दूर हो मगर 
पास होने का ख़याल लिए
मैं मरने से हर रोज बचता हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'



चलते-चलते चले जाएंगे

चलतें-चलतें घर  
पहुंच जाएंगें
पांवों के छाले भी 
सह जाएंगें 
हाथ में दो रोटी 
बांध बग़ल में 
गठरी 
हम चले जाएंगें,
हम रोएंगें
हम गिड़गिड़ाएंगें 
फ़िर भी
यें सरकार जो 
न सुनेगी तो 
हम चलते-चलते ही
चले जाएँगें,
हम हर शहर में 
हर चौराह पर 
अपना दर्द बताएंगें 
फ़िर भी 
पुलिस जो डंडें मारेगी 
तो 
हम उस दर्द को भी 
सहते-सहते 
चले जाएंगें,
घर पहुँचनें की आस लिए 
बच्चों को ढाँढ़स बंधाएं 
सूखी रोटी खाते-खाते 
हम चले जाएंगें,
राह जो हम भटकेंगें 
तो 
सूनी-सूनी पटरियों को 
राह बनाकर
हम चले जाएंगें
थकेंगें जो ग़र कहीं तो 
उन्हीं पटरियों पर 
हम सो जाएंगें,
हम चलते-चलते 
चले जाएंगें !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 







Thursday 7 May 2020

ख़ामोशी

ख़ामोश हूँ मैं
चुप वो भी है,
शिकायत थोड़ी
उनसे हमें भी है
थोड़ी हमसे
उन्हें भी है,
इंतजार हम भी
करते है उनका
इंतजार वो भी
करते है हमारा,
बातें याद करके
पुरानी
वो भी रोते है
तो
कभी हम भी,
चेहरा उनका 
दिल में मेरे
मेरा दिल में उनकें 
आज भी ज़िंदा है,
पल जो बीते
सुनहरे साथ उनकें
ताज़ा आँखों में मेरी
आज भी है,
बात करने को
बेताब उनकीं आँखें
बया करती कहानी
सबकुछ तस्वीरों में
जीवित आज भी है,
कौन करें शुरुआत
फिर से
हिचक थोड़ी उन्हें
भी है,
थोड़ी हमें भी है ,
इश्क़ उनसे थोड़ा
मुझें आज भी है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Monday 27 April 2020

भीड़तंत्र

भीड़ का कोई नाम
नहीं होता है
यें गुमनाम-सी
आती है
और
एक दंगे-सी 
फ़ैल जाती है,
धर्मे के ठेकेदार
हिंदू-मुस्लिम
करते रह जाते है
और यें भीड़
जात-धर्म देखे
बिना ही
किसी निर्दोष
की जान लेकर
बेखौफ होकर
चली जाती है,
प्रशासन मूक दर्शक
बनकर
रह जाता है
और नेता
एक-दूजे पर
दोष मढ़ते-मढ़ते
एक नया मुद्दा
गढ़ जाते है
तब तक
एक और भीड़
तैयार हो जाती है
और
यें सिलसिला यूँ ही
चलता रहता है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


जब लॉकडाउन खत्म हो जायेगा

जब
लॉकडाउन खत्म हो जायेगा
और
सब कुछ
शने:शने: से ठीक हो जायेगा
तब
मैं तुमसे फिर मिलूंगा
उसी पुराने बाग़ में
जहाँ
हम पहली दफ़ा मिले थे
बारिश में भीगे थे
माली की डांट सुनकर
भागे भी थे,
हम फिर चलेंगे उसी सिनेमाघर में
जहाँ
हमने साथ में पहली बार
फ़िल्म देखी थी,
हम फिर से रात के अँधेरे में
उजाला फैलाने साथ चलेंगे
हर ग़म को हम उस रात में
बाँट चलेंगे,
हम फिर जाएंगे उस नदी के किनारे
और बुन आएंगे ख्वाब
जो पिछली दफ़ा रह गए थे
आधे-अधूरे,
जब
सब कुछ सामान्य हो जायेगा
तब
मैं फिर आऊंगा
तुम्हारे संग कहीं दूर चलने के लिए
एक नयी उड़ान भरने के लिए !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर'


 

Saturday 25 April 2020

सर्द रातों में

सर्द रातों में
खुलें आसमॉ के नीचे
तारों को गिनते हुए
उसकी उस बेशक़ीमती
मुस्कान को
याद करते हुए,
एक रात की चाह में
जिसमें बग़ल में बैठ
उसके,
ज़ुल्फ़ों से झाँकती हँसी
को थामें
सब कुछ क़ुर्बान करने
को तैयार
सिर्फ़ उस सुनहरे पल
के लिए
मैं उसकी अप्रितम याद में
उसके आग़ोश में खोने को
टकटकी लगायें
उसकी सोच में डूबा-सा
अनगिनत ख़यालों में

खोया हुआ हूँ !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

Friday 24 April 2020

सूर्य की किरणें और तुम्हारी हंसी


तुम्हारी हंसी
सूर्य की किरणों
की माफ़िक
शुद्ध व सुन्दर है,
जब भी यें किरणे
खिड़की से होती हुयी
मेरे चेहरे पर आती है
तब सिर्फ़
तुम्हारी हंसी
याद आती है,
जैसे सूर्य की किरणे
छनकर सुनहरी
हो जाती है
बिलकुल वैसे ही
तुम्हारी हंसी भी
जुल्फों से छनकर
और अधिक
मनोरम हो जाती है,
किरणों की भांति
तुम्हारी हंसी
ऊर्जा का संचार
तो करती ही है
पर यें मुझमें
एक नयी जान भी
भरती है,
सच कहूं तो माही
तुम्हारी हंसी
हर ख्वाब पूरा करने की
ताकत रखती है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Thursday 9 April 2020

विरह में

जगमगाते तारों की 
रात में 
अंधेरा हूं मैं,
सब कुछ पास 
होने पर भी 
अधूरा हूं मैं,
बीते अनगिनत 
किस्सों का 
एक किस्सा हूँ मैं,
पतझड़ के मौसम में 
दरख्तों से टूटता हुआ 
एक पत्ता हूं मैं,
सुनहली रातों का 
एक बुझता-सा 
दिया हूँ मैं,
मंज़िल की ओर 
निकला 
एक भटका राही हूँ मैं,
एक बंधन में बंधा 
आज़ाद परिंदा हूं मैं,
और 
आने वाले कल के
इंतजार में
रुका हुआ आज हूं मैं,
सुलझी हुयी कहानियों का 
एक अनसुलझा पात्र हूँ मैं,
किसी के ख्वाबो की 
लम्बी रात हूं मैं,
अलसायें सपनों का 
एक आधा-सा 
स्वप्न हूँ मैं,
भीड़ में भी  
हाँ ,भीड़ में भी 
अकेला हूँ मैं -2 



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Sunday 5 April 2020

एक कसक

एक कसक मन में रह गयी                                  
बिन मिले ही ये रात ढल गयी,
हंसीं जो खिलखिला रही थी
पास मेरे
बिन कुछ कहे ही चली गयी,
होंठ जो कहने वाले थे
कुछ बात तेरे
बिन बात किए ही
सिल गये,
आँखें जो करने वाली थी
नजाकत साथ मेरे
ना जाने क्या बात थी कि
बिन कुछ करे ही
सो गयी,
ये रात ना जाने क्यों प्यारे
बिना उसके आलिंगन के ही
सुबह में हो गयी,
एक कसक थी जो मन में प्यारे
मन में ही रह गयी ||

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

तू कह दे तो

तू कह दे तो                  
तेरी आँखों का बन मैं काजल
तेरी आँखों में बस जाऊं
तुझको सवारू
तुझको निहारूं,

तू कह दे तो
तेरे गले का बन हार
तेरे दिल के करीब हो मैं जाऊं
तुझको श्रृंगारु
तुझको महकाऊं

तू कह दे तो
तेरी हाथो की बन मैं चूड़ियाँ
खनकूं
एक संगीत बनकर मैं
तेरे कानों में चहकूं,

तू कह दे तो
बनकर तितली मैं
तेरे पास उड़ता ही रहूँ
बनकर भंवरा
मंडराता फिरूँ
लाकर फुलों की सारी खुशबू
तुझ पर मैं उड़ेलूँ
तू कह दे तो .........----

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Wednesday 1 April 2020

तुम मेरे लिए काफ़ी हो

तुम्हारा मेरे पास    
बैठकर 
मुझे निहारना 
समुन्द्र की 
लहरों में 
मेरा हाथ थाम कर 
चलना 
मेरे लिए काफ़ी है,
पथरीली राहों में 
नीले गगन के नीचे 
सुनसान सड़क पर 
तुम्हारा साथ होना 
काफ़ी है,
हर मुश्किल घड़ी में 
तुम्हारा हल्का-सा 
मुस्कुरा जाना 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम कहीं भी रहो 
पर 
पास होने का एक 
एहसास तुम्हारा 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा बेझिझक होकर 
मुझसे बाते करना 
और 
बातों ही बातोँ में 
मुझे गले लगाना 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा चेहरा 
हर परेशानी जो 
मेरी हर लेता है
और 
मेरे ग़मों को 
खुशियों में जो 
बदल देता है 
मेरे लिए काफ़ी है,
ज़माना हो भले ही 
ख़िलाफ़ मेरे 
तो होने दो
सब कुछ लुट जाए 
मेरा मुझसे तो 
लुट जाने दो 
तुम साथ हो 
मेरे लिए
इतना ही काफ़ी है -2

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

कोरोना काल में

Pic courtesy - Scroll.in
जब भटक रहा है 
इंसान दर-ब-दर 
तब तुम 
हाथ धोना उसे 
सीखा रहें हो,
है नहीं घर 
पास उसके 
फिर भी 
तुम उसे घर बैठना 
सीखा रहें हो,
वर्षों से झेली है 
'सामाजिक दूरी' 
जिसने, उसे तुम 
'सोशल डिस्टैन्सिंग' 
सीखा रहें हो ,
भूखा है पेट
बिलख़ रहें है बच्चे 
और 
तुम उसे डंडे की 
मार से डरा रहें हो,
अपने ही देश में 
लोग जब बेघर 
हो जाए
महामारी से ज्यादा 
भूख जब उन्हें 
सताने लगे,
तब तुम नाप 
सकते हो 
देश की तररकी 
और 
देख सकते हो 
विकास को करीब से
बहुत करीब से !!



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Friday 27 March 2020

नीला है जग सारा

नीला है आसमां 
नीली है यें दीवारे 
घर की मेरे,
नीले है आसमां से 
लिपटे यें तारे 
नीली है यें नजरें 
देखती है जो इन्हें,
नीली है यें जमीं 
इस पर चलने 
वाला हर 
शख्स है नीला,
सातों समुन्द्र है नीले
नीला है वो जहाज 
जो 
चलता है अंदर इसके,
नीले है ये बादल 
नीली है बूंदे
बरसती है जो इनसे,
 नीला है वो झंडा 
जिस पर लिखा है 
नारा जय भीम का,
बाबा साहब का कोट
नीला 
नीला है कलम कांशीराम का 
सावित्रीबाई की साड़ी नीली
नीली है किताब संविधान की,
नीला है खेत 
हल जोतने वाला
किसान भी नीला 
धान नीला 
इसे खाने वाला
इंसान नीला,
नीली है मेरी हर ख्वाहिसे 
नीली है मेरी सारी चाहते ....- 3

द्वारा - नीरज  'थिंकर'



Wednesday 25 March 2020

लॉकडाउन और तुम

इक्कीस दिनों का
यें लॉकडाउन 
तुम्हारे बिन 
मुश्किल है,
पर जीवन में 
हमेशा साथ होने 
के लिए 
यें दूरी
जरूरी भी तो है,
मालूम है कि
सब कुछ ठीक 
हो जायेगा
पर 
एक भय गहरा-सा 
सब कुछ ठहरा-सा 
स्मृतियां लाता है 
पुरानी 
बीती जो संग तुम्हारे
वो रातें याद आती है 
जो काली थी 
मगर उजली-सी 
लगती थी
आने वाली रातें 
कैसी होगी ?
सोचकर मन 
भयभीत हुए जाता है ..
लेकिन 
धुंधली-सी तुम्हारी 
वो मुस्कान 
सब कुछ भुला दिए 
जाती है 
और
फिर से तुमसे मिलने 
की चाह 
मन में उमंग भरे 
जाती है !!!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Wednesday 18 March 2020

साइकिल और तुम

जब मैं पैदल 
चल कर स्कूल 
जाती हूँ ...
और तुम साइकिल 
चला कर 
धीरे-धीरे रोज 
मेरे पीछे 
आते हो...
अच्छा लगता है 
तुम्हारा बिना कुछ 
कहें ही 
सब कुछ कह जाना,
घर लौटते वक़्त 
तुम मुझे साइकिल पर 
बैठने को कहते हो 
और 
मैं हर बार मना 
कर देती हूँ 
तब तुम 
साइकिल से उतर कर 
साथ मेरे जो चलते हो 
साइकिल पर 
न बैठने पर भी 
बैठने का एहसास
होता है...
साइकिल जब कभी भी 
कहीं भी देखती हूँ 
तो 
सिर्फ तुम याद आते हो...
साइकिल को थामे 
धीमे से मुस्काते 
सिर्फ़ तुम याद आते तो ..!!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

रेलवे स्टेशन और तुम

रेलवे स्टेशन पर 
जब मैं 
अनजान-सी आकर 
बैठ जाती हूँ ..
और फिर 
तुम भी किसी 
यात्री की भांति 
आकर बगल में 
जब बैठते हो ...
और 
सिर झुकाकर 
अनजान बनकर 
बात करते हो ..
मैं भी सहमी-सी 
सिर हिलाकर 
हर बात का 
जवाब देती हूँ..
मालूम है कि 
एक शहर में 
रहते हुए 
एक दुसरे को 
जानते हुए भी,
अनजान बनकर 
प्यार करना 
कठिन होता है 
मगर एक सुकून भी 
देता है ||

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

तिल - तेरी आँख के किनारे का

तेरी आँख के 
किनारें पर जो 
एक तिल है 
छोटा-सा 
उसकी याद 
कभी-कभी 
अनायास ही 
आ जाती है मुझें,
सोते हुए 
सपने बुनते हुए 
यें तिल पंख लगा 
कर उड़ता है 
संग मेरे,
यें तिल मुस्कुराता-सा 
दिल बाग़-बाग़ करता है 
एक मनोरम संसार भी 
रचता है,
यें तिल मुझें 
तेरा साथ होने का 
एहसास दिलाता है ,
हाँ, तेरा यें तिल 
मुझे बहुत सुहाता है ||

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

घर की याद किसको नहीं आती है !

घर की याद किसको नहीं आती है, चाहे घर घास-फुस का हो या फ़िर महलनुमा हो घर की याद किसको नहीं आती है, जहाँ माँ हर वक़्त राह देखती हो, पिता जहाँ ख़...