Sunday, 19 April 2020

अनजान शहर

दो प्रेमी
अनजान-से
अनजाने शहर में
यूँ आ मिले अचानक
कि
लगा
धरती आ मिली
हो आसमां से,
पास आ अनजानी-सी
जब वो बैठी पास मेरे
ख़ुश्बू उसकी मुझमें
यूँ गुली कि
मैं स्तब्ध हो
रुका का रुका
रह गया  !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

No comments:

Post a Comment

एक पत्र दादा जी के नाम

दादा जी                                        आपके जाने के   ठीक एक महीने बाद   मैं लिख रहा हूँ पत्र   आपके नाम , मैं पहले...