Monday, 27 April 2020

भीड़तंत्र

भीड़ का कोई नाम
नहीं होता है
यें गुमनाम-सी
आती है
और
एक दंगे-सी 
फ़ैल जाती है,
धर्मे के ठेकेदार
हिंदू-मुस्लिम
करते रह जाते है
और यें भीड़
जात-धर्म देखे
बिना ही
किसी निर्दोष
की जान लेकर
बेखौफ होकर
चली जाती है,
प्रशासन मूक दर्शक
बनकर
रह जाता है
और नेता
एक-दूजे पर
दोष मढ़ते-मढ़ते
एक नया मुद्दा
गढ़ जाते है
तब तक
एक और भीड़
तैयार हो जाती है
और
यें सिलसिला यूँ ही
चलता रहता है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


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