Thursday, 10 December 2020

मानवाधिकार दिवस और तुम

इस मानव अधिकारों के
दिवस पर
मैं भी अपने कुछ अधिकारों को
सुनिश्चित करना चाहता हूँ,
तुझको अनिमेश देख
तुझमें ही खोना चाहता हूँ,
तेरे चेहरे की
शिकन में छुपी सुंदरता को
पाना चाहता हूँ,
हर पल तेरे साथ हो
जीने का अधिकार चाहता हूँ,
तेरी आँखों में छुपी हँसी को
हरदम साथ ले ,
आजीविका का अधिकार चाहता हूँ
तेरी घनी घुंघराली ज़ुल्फ़ों में
आवास का अधिकार पाना चाहता हूँ ,
तेरी आँखों में
खो जाने की स्वतंत्रता का
अधिकार चाहता हूँ,
तू यूँ ही हँसती रहे
ख़्वाब आँखों में तेरी
ऊँची उड़ान भरने के
यूँ ही पलते रहे
और
जीने की ख़्वाहिश मुझमें
यूँ ही हर दम तू भरती रहे
और
मानव दिवस हर दम
मुझे तुझ-सा दिखता रहे ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Saturday, 10 October 2020

मेरी दादी

Creator: John Gordon
मेरी दादी
एक ही साँस में
बिना रुके, बिना थके
सांसों को रोके
सब कुछ कह देना
चाहती है,
क्योंकि उसे मालूम है
मैं, कम वक़्त के लिए
ही गाँव आता हूँ
और
वो उसी कम वक़्त में
सुना देती है 
इंदिरा गाँधी की हत्या 
से गाँव में छाए मातम 
का द्रश्य,
ऊंट पर गाँव में 
आने वाली पुलिस के
रौब ज़माने वाली बातें,
उसके पिता, माँ 
और भाइयों के मरने की 
आँखों देखी घटनाएँ 
वह साथ में रोतीं भी
जाती है,
हर बार
जब भी मिलता हूँ
दादी से
वो ही कहानियां, घटनाएँ
बिना किसी बदलाव के
वो हर बार सुनाती है मुझे
एक ही साँस में !!


द्वारा- नीरज 'थिंकर'

Friday, 5 June 2020

धीरे चला हूँ मैं

मैं बहुत रुका हूँ
हरदम धीरे चला हूँ
तू कहीं छूट ना जाये
इसीलिए तो
रुक-रुककर चला हूँ मैं
तमाम उलझनो से निकल
तुझ पर ही आकर
टिका हूँ,
व्यस्त ज़िंदगी की
भाग-दौड़ में भी
हे,प्रिय
बहुत धीरे चला हूँ मैं !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर

Friday, 29 May 2020

पत्थर बन तू

पत्थर बन तू
मज़बूत हो,
ख़ुद से कर प्रेम
आँखो के धोके से
बाहर निकल तू,
भावनाओं के झंजाल से
काल्पनिक संसार से
नाता तोड़ तू,
बारिश के प्रेम को भूल तू
ख़्वाबों के महल को
तोड़ तू ,
ज़िन्दगी की हक़ीक़त को
पहचान तू ,
ज़ुल्फ़ों की छांव को
आँखों के महताब को
और
यौवन के आँचल को
छोड़ तू,
अग्नि में जल
बन ज्वाला तू !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Monday, 18 May 2020

पल -पल टूटना

हर रोज़,हर पल   
टूटता हूँ,
टूट कर ,फिर से
जुड़ने की कोशिश में
बार-बार टूटता हूँ,
कभी-कभी
सोचता हूँ,
टूटा ही रहूँ,
पर
सबकुछ भूल
एक नयी राह
बनाने की सोच,
थोड़ा चलता हूँ,
इसी बीच
कुछ देख
ठिठक जाता हूँ,
कुछ सोच
पुनः टूटता हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

हदों के पार वाला प्रेम

हम उम्र के न होने  
पर भी,
उनका आपस में प्यार 
करना 
जुर्म साबित हुआ,
समाज के ताने तो
मिले ही,
हर वक़्त डर बना रहा
घर वालों को
पता चलने पर घर से
निकाले जाने का
इसीलिए शायद वो
हर वक़्त उसका
हाथ पकड़े रहती है
ताकि तमाम जुमलों
को भूल
वो
सुरक्षित महसूस
कर सके उसके हाथों में  !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Thursday, 14 May 2020

धर्म एक अफीम है

Pic Courtsey- googleविचारों व तर्कों का
जब तुम सामना जो
नहीं कर पाओगे
तब तुम
धारदार हथियार व बंदूके
लेकर  आओगे,
कोई जो करेगा सवाल

होगा गर जो असहमत
तुमसे
वहीं उसे तुम
मार डालोगे,
मरी गायों को
जब कोई घसीटकर
ले जायेगा,
तब गौभक्ति तुम्हारी
जागेगी
और गौगुंडे बन कर
तुम आ जाओगे,
मानवता को शर्मसार
कर दे जो
हर वो कृत्य
खुलेआम तुम कर जाओगे,
समरसता के नाम पर
दलितों व आदिवासियों
को हिन्दू बनाकर
भाषणों में,
जब तुम सत्ता पर काबिज
हो जाओगे
तब तुम
हिन्दूराष्ट्र बनाने को
इन्हीं दलित-आदिवासियों
का सबसे पहले
कत्लेआम करोगे,
रोजगार जो
कोई मांगेगा
भूखे पेट जो
कोई बिलखेगा
उस वक़्त
उन्हें तुम
राम लल्ला
याद दिलाओगे -2 !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Sunday, 10 May 2020

बिन माँ के

माँ की मृत्यु के बाद       
क्या हालत होगी उस बच्चे की 
छोड़ चली दामन जिसकी अपनी प्यारी माँ 
प्यार भी न मिला होगा, आँचल का सुख भी 
न भोग पाया होगा,
तब अचानक
चल बसी होगी जिसकी स्नेहशीलमयी माँ

हो गया होगा बेसहारा बेचारा, नहीं रहा होगा 
जिसका कोई सहारा
रोता होगा दिनभर माँ की याद में अपनी 
लेकिन 
मिला न होगा आंसू पोंछने वाला कोई सहारा,
पुकारता होगा माँ को अपनी जहाँ में सारे 
मिली न होगी लेकिन उसकी अपनी माँ

नयी माँ आयी भी होगी
 तो
बन न सकी होगी उसकी माँ 
दे न सकी होगी अपनी माँ-सा प्यार
फ़िर वे बेचारा पुकारने लगा होगा 
अपनी माँ को फ़िर से आज 

कितनी मुश्किल से बढ़ रहा होगा 
शरीर उसका अपनी माँ की याद में 
कट रहा होगा,
फ़िर भी वह इस दुनिया में
तमाम मुश्किलों का सामना कर रहा होगा,

माँ की ममता से अधूरा उसका जीवन 
कैसे कट रहा होगा ?
माँ के आँचल में सोने का
मन उसका भी तो हो रहा होगा !!
माँ के पैर छूने का दिल 
उसका भी तो करता होगा !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 



भैंस और मेरी माँ

मेरी माँ की सांसें 
उसकी भैंस में 
बसतीं थी,
मेरी माँ की भैंस 
कुछ दिन पहले ही
मर गयी,
माँ हर वक़्त रोतीं 
रहतीं है,
भैंस ने मरने से
कुछ दिन पहलें
एक बछड़े को 
जन्मा था,
माँ उसे हर वक़्त 
दुलारती है,
उसकी माँ तो लौटा
नहीं सकतीं है
पर 
उसे उसकी माँ-सा
प्यार-दुलार देने की
कोशिश करती रहती है
मेरी माँ 
हर वक़्त
भैंस के साथ बितायें 
पलों में
खोयीं-सी रहतीं है



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Friday, 8 May 2020

मैं जानता हूँ

मैं जानता हूँ  
कि 
तुम नहीं आओगी            
फ़िर भी 
हर सुबह दरवाजे पर 
तुम्हारी ही राह तकता हूँ,
आने-जाने वाले 
हर शख्स से 
तुम्हारी ही बातें करता हूँ,
अरसा बीत गया मिले हुए 
पर 
लगता है जैसे 
अभी-अभी गए हो मिलके,
जानता हूँ 
भुला दिया है तुमने मुझें 
फ़िर भी
तुम्हारे लौट आने की 
हर वक़्त आँखों में 
एक आस लिए फिरता हूँ,
तुम्हारी शरारतें याद करके
हर रोज दिल को 
खुशनुमा मैं करता हूँ 
जानता हूँ तुम दूर हो मगर 
पास होने का ख़याल लिए
मैं मरने से हर रोज बचता हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'



चलते-चलते चले जाएंगे

चलतें-चलतें घर  
पहुंच जाएंगें
पांवों के छाले भी 
सह जाएंगें 
हाथ में दो रोटी 
बांध बग़ल में 
गठरी 
हम चले जाएंगें,
हम रोएंगें
हम गिड़गिड़ाएंगें 
फ़िर भी
यें सरकार जो 
न सुनेगी तो 
हम चलते-चलते ही
चले जाएँगें,
हम हर शहर में 
हर चौराह पर 
अपना दर्द बताएंगें 
फ़िर भी 
पुलिस जो डंडें मारेगी 
तो 
हम उस दर्द को भी 
सहते-सहते 
चले जाएंगें,
घर पहुँचनें की आस लिए 
बच्चों को ढाँढ़स बंधाएं 
सूखी रोटी खाते-खाते 
हम चले जाएंगें,
राह जो हम भटकेंगें 
तो 
सूनी-सूनी पटरियों को 
राह बनाकर
हम चले जाएंगें
थकेंगें जो ग़र कहीं तो 
उन्हीं पटरियों पर 
हम सो जाएंगें,
हम चलते-चलते 
चले जाएंगें !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 







Thursday, 7 May 2020

ख़ामोशी

ख़ामोश हूँ मैं
चुप वो भी है,
शिकायत थोड़ी
उनसे हमें भी है
थोड़ी हमसे
उन्हें भी है,
इंतजार हम भी
करते है उनका
इंतजार वो भी
करते है हमारा,
बातें याद करके
पुरानी
वो भी रोते है
तो
कभी हम भी,
चेहरा उनका 
दिल में मेरे
मेरा दिल में उनकें 
आज भी ज़िंदा है,
पल जो बीते
सुनहरे साथ उनकें
ताज़ा आँखों में मेरी
आज भी है,
बात करने को
बेताब उनकीं आँखें
बया करती कहानी
सबकुछ तस्वीरों में
जीवित आज भी है,
कौन करें शुरुआत
फिर से
हिचक थोड़ी उन्हें
भी है,
थोड़ी हमें भी है ,
इश्क़ उनसे थोड़ा
मुझें आज भी है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Monday, 27 April 2020

भीड़तंत्र

भीड़ का कोई नाम
नहीं होता है
यें गुमनाम-सी
आती है
और
एक दंगे-सी 
फ़ैल जाती है,
धर्मे के ठेकेदार
हिंदू-मुस्लिम
करते रह जाते है
और यें भीड़
जात-धर्म देखे
बिना ही
किसी निर्दोष
की जान लेकर
बेखौफ होकर
चली जाती है,
प्रशासन मूक दर्शक
बनकर
रह जाता है
और नेता
एक-दूजे पर
दोष मढ़ते-मढ़ते
एक नया मुद्दा
गढ़ जाते है
तब तक
एक और भीड़
तैयार हो जाती है
और
यें सिलसिला यूँ ही
चलता रहता है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


जब लॉकडाउन खत्म हो जायेगा

जब
लॉकडाउन खत्म हो जायेगा
और
सब कुछ
शने:शने: से ठीक हो जायेगा
तब
मैं तुमसे फिर मिलूंगा
उसी पुराने बाग़ में
जहाँ
हम पहली दफ़ा मिले थे
बारिश में भीगे थे
माली की डांट सुनकर
भागे भी थे,
हम फिर चलेंगे उसी सिनेमाघर में
जहाँ
हमने साथ में पहली बार
फ़िल्म देखी थी,
हम फिर से रात के अँधेरे में
उजाला फैलाने साथ चलेंगे
हर ग़म को हम उस रात में
बाँट चलेंगे,
हम फिर जाएंगे उस नदी के किनारे
और बुन आएंगे ख्वाब
जो पिछली दफ़ा रह गए थे
आधे-अधूरे,
जब
सब कुछ सामान्य हो जायेगा
तब
मैं फिर आऊंगा
तुम्हारे संग कहीं दूर चलने के लिए
एक नयी उड़ान भरने के लिए !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर'


 

Saturday, 25 April 2020

सर्द रातों में

सर्द रातों में
खुलें आसमॉ के नीचे
तारों को गिनते हुए
उसकी उस बेशक़ीमती
मुस्कान को
याद करते हुए,
एक रात की चाह में
जिसमें बग़ल में बैठ
उसके,
ज़ुल्फ़ों से झाँकती हँसी
को थामें
सब कुछ क़ुर्बान करने
को तैयार
सिर्फ़ उस सुनहरे पल
के लिए
मैं उसकी अप्रितम याद में
उसके आग़ोश में खोने को
टकटकी लगायें
उसकी सोच में डूबा-सा
अनगिनत ख़यालों में

खोया हुआ हूँ !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

Friday, 24 April 2020

सूर्य की किरणें और तुम्हारी हंसी


तुम्हारी हंसी
सूर्य की किरणों
की माफ़िक
शुद्ध व सुन्दर है,
जब भी यें किरणे
खिड़की से होती हुयी
मेरे चेहरे पर आती है
तब सिर्फ़
तुम्हारी हंसी
याद आती है,
जैसे सूर्य की किरणे
छनकर सुनहरी
हो जाती है
बिलकुल वैसे ही
तुम्हारी हंसी भी
जुल्फों से छनकर
और अधिक
मनोरम हो जाती है,
किरणों की भांति
तुम्हारी हंसी
ऊर्जा का संचार
तो करती ही है
पर यें मुझमें
एक नयी जान भी
भरती है,
सच कहूं तो माही
तुम्हारी हंसी
हर ख्वाब पूरा करने की
ताकत रखती है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Thursday, 23 April 2020

एक नाटक ऐसा भी

नाटक वो ही था
पात्र बदल दिये गए,
जगह भी वही थी
बस
परिस्थितियाँ बदल
दी गयी,
सब अपना-अपना
किरदार पहले जैसे ही
निभा रहे है
बस
कुछ पात्रों का
किरदार बदल
दिया गया,
इस नाटक में
जो कि पुराना ही है
बस
वो बात नहीं है
ज़बरदस्ती के किरदार
निभाने में !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

भीड़ और शराबी

भीड़ का कोई नाम
नहीं होता है,
ये गुमनाम-सी
आती है
एक दंगे-सी
फैल जाती है,
बेमतलब से सब
भीड़ बन
किसी शराबी पर
टूट पड़ते है,
कोई अपने घर
का ग़ुस्सा तो
कोई अन्य परेशानियों से
परेशान
अपने हाथ-पाँव
परिस्थितियों की मार से
मरे हुए
उस आदमी पर
आज़माने लगते है,
हम किस समाज का
निर्माण कर रहे है ?
जहाँ पर
एक मरे हुए आदमी को
कई मरे हुए आदमी
बड़ी निर्दयता से
मार रहे है !

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

दिल्ली की याद में

दिल्ली अब तू बहुत याद आएगी
तेरे साथ बिताए पल बहुत रुलाएँगे
मैं तुझे छोडकर
कैसे रह पाउँगा ?
दिल को मैं अपने
कैसे समझाऊँगा ?
आँखें बहुत नम है
और
जाने की इच्छा भी कम है
हँसी -ठिठोली और मस्ती
की
जो तेरी गोद में
कैसे मैं भूल पाऊँगा ?
दिल्ली तू मेरा अब दिल
बन चुकी है ,
दिल को निकाल कर
कैसे मैं जीं पाऊँगा ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

एक ख्वाब ऐसा भी

मेरे चेहरे पर ख़ुशी
तेरे आने से आयी थी ।
तूने ही उसे छीन लिया
सोचा था, अब
ख़ुशियाँ अपार होगी,
ज़िन्दगी गुलज़ार होगी ,
रोज़ नयें क़िस्से बनेंगे,
बैठ दोनो,शीतल ब्यार में
उन्हें सुनेंगे ,
परी लोक में जा धुन
नयी छेड़ेंगे,
एक दूसरे का थाम हाथ
पूरा जग घूमेंगे ,
आँखो में आँखें डाल
एक दूजे को
पूरी रात तकेंगे,
चटपटी बातों को तेरी चूरा
छुपा लूँगा कहीं,
जब नींद उड़ी तो देखा
में गहरीं नींद में था ,
ये सब तो महज़
एक ख़्वाब था  !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

बहुत दिन हुए

ख़ुश्बू तेरी बातों की पिए
बहुत दिन हुए,
हँसी की फुलवारी में
तेरी झूमें
बहुत दिन हुए,
ज़ुल्फ़ों के साथ तेरी
शरारत किए
बहुत दिन हुए,
हाथों में तेरे हाथ डाल
एक लंबी दूरी तय किए
बहुत दिन हुए,
बारिश में एक साथ भीगे
बहुत दिन हुए,
ठिठौली कर तूझे चिड़ाये
बहुत दिन हुए,
तेरी आँखों में झाँक
उनका रसपान किए
बहुत दिन हुए !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

तुम्हारा रूठना

तुम जो रुठ गयी हो
ये ज़माना क्यों रूठा- सा
लगता है,
ज़माने के बीच हूँ
फिर भी
भीड़ में भी तनहा-सा
लगता है,
चारों तरफ़ सोरगुल है
फिर भी
सब कुछ ठहरा- सा
लगता है,
ज़िंदगी भागी जा रही है
और
मैं किसी के इंतज़ार में
रुका-सा
राही लगता हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

उसका वादा

उसने कहा था मुझे
कि
वो धीरे-धीरे सबको
बता देगी.
हमारे प्यार का ऐलान
सबके सामने
कर देगी,
कल ही तो उसने
बताया था मुझे
कि
वो बहुत प्यार करती है
मुझसे,
और हाँ, उसने ये भी
तो कहा था
की
कभी नहीं जायेगी वो
छोड़कर मुझे,
उसने प्यार करने की
जगह भी तो ढूँढ ली थी,
क्या वो जगह अब
काले बादलों से छायीं रहेगी ?
क्या अब वहाँ
कोई नहीं जायेगा ?
उस रात जो की
आज़ादी की रात थी
उसने यह भी तो
कहा था
कि
मेरा उसकी कमर में हाथ डाले
चलना उसे अच्छा लगता है
उसी रात उसने
बेख़ौफ़ बिना डरे
प्यार करने की
आज़ादी की बात भी तो
कही थीं,
उसने न जाने मुझे
कितने सलीक़े सिखाने का
वादा भी तो किया था ,
उसने ये भी तो बताया था
कि
उसका मन नहीं लगता है
पढ़ाई में
जब मैं उसके पास
नहीं होता हूँ तो,
उसका दिन भी नहीं गुज़रता है
देखे बिना मुझे
और
वो भी मुझसे उतना ही
प्यार करती है जितना की
मैं उससे करता हूँ ,
उसने पहली बार हिंदी
में लिखी थी कविता
वो भी मेरे लिये,
क्या कविताएँ बिना भावों के
लिखी जा सकती है भला ?
उसका यूँ कहना
कि
जब मेरा हाथ उसके
हाथ में होता है
तो
उसे स्वर्ग सा एहसास होता है
उसका इन सारी बातों को
यूँ ही नकार ,
सॉरी कह कर चले जाना
और
भावनाओं को बारिश की
बूँदो में मिला
कही खो जाना
म्रतप्राय कर गया मुझे !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

तेरा छुपना

तू जब छुप
जाया करती थी
चिढ़ाने के लिए मुझे
और
मैं तुझे ढूँढा करता था
हर जगह
जब तू मिल जाती थी
एक हँसी बिखेर
मुझ पर छा जाती थी
वो पल कितने हसीन
हुआ करते थे
पर
अब जब तू छुप
जाती है
ढूँढने पर भी
हँसी लेकर
लोट नहीं आती
आती नहीं है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

घर की याद

आज अचानक
घर की याद
आ गयी,
घर में बैठे
बुज़ुर्ग दादा जी
आँखों में तेरने लगे
पिताजी हाथ में
अख़बार लिए
याद आने लगे
माँ रोटी सेंकती
हुयी
मुझे पुकारने लगी
दादी माँ पुरानी
कहानियों के साथ बैठ
मुझसे बतियाने लगी
माँ खेत जाने से पहले
खाना खा लेना,
कहीं जाना मत धूप में
जैसी हिदायतें देकर
जाने लगी
आज मुझे घर की
याद ,
अचानक यूँ आने लगी !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर ' 

तेरी नींद

तेरी नींद में
अपनी नींद ढूंढ़
उसी में खो गया मैं,
तू सो रही थी
भले ही,
पर
तेरी बंद आँखों में भी
ओजसव उतना ही था,
हँसी उतनी ही
तन्मयता से चेहरे पर
खेल रही थी,
शरारत का भाव
उतना ही चंचल था
तु नींद में
अति मनोरम
लग रही थी  !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर ' 

आँखों का संसार

तुम्हारी ख़ूबसूरत आँखों से
रच लूँगा संसार नया,
जिसमें होंगे प्रेमी जोड़े
बाँहें फेलाए ,
नयें नज़ारे मैं गढ़ूँगा
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की
छांव में,
प्रेम गीत नए मैं लिखूँगा
तुम्हारी मीठी बातों से,
तुम्हारे मधुर होंठों से
एक एहसास नया
जब मिलेगा तो,
मधुता जीवन की सारी
न्योछावर तुम पर 
मैं कर दूँगा ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

तेरी चुलबुली बातें

तेरी चुलबुली बातों से
तू जो मोह लेती है
मन हर किसी का ,
तेरी नटखट अदाओं से
जो तू हर लेती है
दिल सबका,
यहीं दोस्ताना ही
तो तेरा
जोड़े रखता है बंधन
दोस्ती का,
इस जन्मदिन पर
क्या उपहार दूँ तुझे
बस
यूँ ही हँसते-मुस्कुराते
बढ़ते रहना ज़िंदगी में
जज़्बातों को थामे,
ख़ुशियों को बाटते रहना
अपनो के बीच
जैसी है वैसी यूँ  ही
बने रहना  !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

माँ के आंसू

जिसने छुपाए रखे
हमेशा
अपने आँसुओं को,
वो माँ भी
आज रो पड़ी,
उसके इन आँसुओं में
कितना रुदन था
जाने वर्षों के दुःखों का
सेलाब था,
वो टूट चुकी थी
जो हरदम मेरे घर से
विदा लेते वक़्त
थामे रखी
अपने आँसुओं को
आज न थाम सकी
ये माँ भी ना
कब तक झेलते रहेगी
दुःख
बिना किसी प्रतिकार के !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

दिवाली

दिवाली सबके लिए नहीं
होती है,
कुछ लोग आज भी नहीं
मनाते ख़ुशियाँ
फटाखे फोड़कर
हरदिन की तरह
यह दिन भी
उनके लिये आम ही
होता है
क्यूँकि
इस दिन भी उन्हें
भटकना पड़ता है
रोटी के लिए,
दिवाली तो बस
चंद लोगों की है
जो
उड़ाते है पूरे साल की
लूट-खसोट इस दिन  !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

एक कलाकार

जीवन के यथार्थ को
ख़ाली पनो पर
उकेरता एक कलाकार,
उसकी उकेरी हुयी
तस्वीरों को देख
हर कोई
एक गहरी सोच में डूब
सोचने पर मजबूर
हो जाता है,
कलाकार हर रोज़
इसी तरह
नए चित्र बनाता है
और
सबक़ों द्वन्द में डाल
नए चित्रों की खोज में
नयी राह पर
निकल पड़ता है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

तू मेरा संबल

दिनभर की तमाम
थकान के बाद
तेरा मिलना
और
मिलकर एक एहसास
भरकर चले जाना
सारी मानसिक उलझनों
को हवा में उड़ा देना
एक अच्छी नींद तो
देता ही है,
साथ ही
अगली सुबह
नई ऊर्जा के साथ
उठकर ,
नवीन विचारों को
गढ़ने की
ताक़त भी देता है,
तू सच में
संबल है मेरा  !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


कभी- कभी

हर दम नहीं
लेकिन
कभी-कभी उसकी
कुछ बातें याद
आती है,
उसका काम करते
हुए बीच-बीच में
मुझे देखकर
एक जन्नत-सी मुस्कान
के संग आँखे मूँदना,
जैसे मेरी आदतों
का मज़ाक़ बनाना
और फिर
अंत में कहना कि
उसे मुझमें सब कुछ
अच्छा लगता है
बस मेरा ग़ुस्सा नहीं !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

इजहार प्यार का

प्रिय, मैं तुमसे कुछ
कहना चाहता हूँ,
जो बात दिल में थी
उसे ज़ुबाँ पर
लाना चाहता हूँ,
तमाम प्यारी बातों को
समेटकर तुमको
देना चाहता हूँ,
अतीत को भूल
आने वाले हर कल में
तेरा साथ चाहता हूँ ,
हे प्रिय,
मैं तुमसे प्यार का
इजहार करना चाहता हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

उलझनों से निकल

तमाम उलझनो में उलझ
फिर से निकल
जब कोई शेष
रह जाता है
तो उसके साथ
क्या होता है?
ये और कोई नहीं
सिर्फ़ वो जानता है ,
तमाम तरह की फबतियों
को झेल,
हर तरह की परेशानीयों
का निकाल हल
जब कोई
नीड़ का निर्माण
फिर से
करना चाहता है
तो
कौन आगे आता है
साथ देने उसका ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

चाय बेचने वाला

चाय बेचने वाला
ट्रेन में
झाँकतें हुए,
मुसाफ़िर की आँखों
में खोजता है
चाय पीने की
चाह को
और
चाय-चाय पुकारते हुए
बढ़ता रहता है
निरंतर आगे
इस आस में
कि
कोई चाय माँगेगा
और वो उसे अपनी
शर्ट की ऊपरी जेब में
रखे कपों में भरकर
एक परोक्ष ख़ुशी
के साथ
चाय पिलायेगा ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

कितना कठिन

कितना कठिन होता
है ना ?
किसी का पास होकर
भी
पास ना होना,
किसी के मुस्कुराने
पर भी
ना मुस्कुरा पाना,
कितना कठिन होता
है ना ?
किसी का छूना
भी
अनछुआ-सा लगना,
आँखों में तमाम आँसू
होने पर भी,
हँसने की नाकाम
कोशिश करना,
ये सब कुछ
समुन्दर के
एक छोर का
दूसरे छोर से
मिलने-सा
लगता है ना ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

आओ न प्रिय

आओ ना प्रिय,
एक मशवरा करते है
बाँट दुःखों को
एक नया
सवेरा करते है,
भूल बातों को
तमाम
नयी शुरुआत करते है
फिर से खिलखिलाकर
ज़ोरों से
इस जहाँ को
गुलज़ार करते है,
आओ ना प्रिय,
बैठकर अनन्त वक़्त
के लिये
अनकहे क़िस्सों को
पूर्ण करते है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

कण-कण में तू

कण कण में तुझको ही
ढूँढ रहा हूँ,
हर फ़ूल में तेरी ख़ुश्बू
खोज रहा हूँ,
युवक-युवतियों के
प्रेम से आच्छादित
इस पार्क में
तेरा प्यार
खोज रहा हूँ
तू इसी शहर में
और छोर पर
आ ना दोनो
मिल जाए ज़रा
इस पार्क में
एक एहसास
अपने दोनो के प्रेम का
भर जाए ज़रा  !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

एक प्रेमी युगल

एक प्रेमी युगल
जिनकी रफ़्तार में
ख़ुद का जहाँ
बसाने की चाह है,
सामाजिक ढाँचे
के दायरे से
निकलकर उन्होंने
जीवनभर साथ रहना
जो चुना है,
वो सब्ज़ी मंडी में
अपने छोटी-सी रसोई
के लिए सब्ज़ियाँ ख़रीदने
आए है,
जितनी कर सकते है
बचत वो करते है,
फिर आपस में वो
कुछ फुसफुसातें है
शायद पैसों का
हिसाब लगा रहे थे,
और फिर अपनी राह
निकल जाते है ।

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

प्रोटेस्ट और इश्क़

प्रोटेस्ट में इश्क़ होना
उसका जय भीम के
बुलंद नारों के साथ
मुझे देखना,
मेरा मुट्ठी बाँध
हाथ उठाना
और
उसके संग
नारे लगाना,
उसका इसी बीच
टकराना
और आगे बढ़ते जाना
प्रोटेस्ट के साथ-साथ
मुझे भी ज़िंदा रखना
प्रोटेस्ट में इश्क़
होना ही तो है  !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

चैत्यभूमि और मैं

चैत्यभूमि जाकर
मैं ढूँढ पाया
अपना अस्थितव
और
एक सुकून
जो मुझमें भर सका
एक ऊर्जा,
बाबा साहेब की
आँखों में
मैं देख पाया उन
संघर्षों को
जो उन्होंने जिया
हमारे लिये,
और
मैं महसूस कर पाया
उनकी मंद मुस्कुराहट में
छुपी वेदना को
जो हमें अब भी
संभल जाने की
ओर संकेत करती
हुयी-सी प्रतीत
हो रही है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

रोने का अर्थ

आँखों से आँसूओ
का आना ही तो
रोना नहीं होता
है ना !
गले का रूँध जाना
और
आँखों का भर
आना भी तो
शरीर का रोना
होता है ना !
बात करते हुए
लड़खड़ाना,
शब्दों को जोड़
वाक्य का रूप
न दे पाना ,
ख़ुशी में चाहते
हुए भी
उल्लासित न हो पाना
भी तो
रोना होता है ना !

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

सपना

मैं उस सपने में
फिर से
खो जाना चाहता हूँ
जिसमें हम और तुम
बरगद के पेड़ की
छांव में बैठ
बतिया रहे थे,
मैं तुम्हारी
ज़ुल्फ़ सँवार
रहा था,
और
तुम मुझे
अपनी मृदुल आँखों से
अनिमेश निहार रही थी ,
उस वक़्त हम भुल
तमाम परेशानियों को
एक-दूजे के
हाथ में हाथ डाले
अपना भविष्य
सँवार रहे थे ।

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

छूअन

तेरे हाथो की
मृदुल छूअन
अभी भी ज़िंदा है
मुझमें,
तेरी गहरी साँसों का
एहसास
मिठास भर लाता है
अब भी,
तेरी नाहक हँसी
अब भी
तैरतीं है मेरी आँखों में,
मेरे कंधें
तेरे माथे का
सहारा बनने को
अब भी बेताब है उतने !!

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

Sunday, 19 April 2020

तेरा दूर होना

तेरा दूर होना भी
पास होने-सा लगना
तेरी तस्वीर का
हर दीवारों पर
ख़ुद-ब-ख़ुद बनना,
बारिश के बाद सब कुछ
उजला-सा लगना,
हर पल तुझसे बेबात
किये ही बतियाना,
तेरी ज़ुल्फ़ों की याद में
एकाएक अनगिनत सपनो में
खोते चले जाना,
तेरा इश्क़ का इस कदर
मुझ पर हावी
होते चले जाना,
माहीं तेरा प्यार
ही है जो मुझे
नीरज बनाता है. !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

अनजान शहर

दो प्रेमी
अनजान-से
अनजाने शहर में
यूँ आ मिले अचानक
कि
लगा
धरती आ मिली
हो आसमां से,
पास आ अनजानी-सी
जब वो बैठी पास मेरे
ख़ुश्बू उसकी मुझमें
यूँ गुली कि
मैं स्तब्ध हो
रुका का रुका
रह गया  !!

द्वारा -नीरज 'थिंकर' 

अधूरी कविताएँ

कुछ कविताएँ अधूरी
होकर भी
पूरी होती है,
शब्द भले ही
थोड़े होते है
पर भावनाएँ
पूर्ण होती है
यें कविताएँ
शब्दों कि माला भर
नहीं होती है
इनमें पिरोयें होते है
अरमां
सँजोए होते है
ख़्वाब
हर एक शब्द
पूरी कहानी होता
है !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

सर्द रातों में

सर्द रातों में
खुलें आसमॉ के नीचे
तारों को गिनते हुए
उसकी उस बेशक़ीमती
मुस्कान को
याद करते हुए,
एक रात की चाह में
जिसमें बग़ल में बैठ
उसके,
ज़ुल्फ़ों से झाँकती हँसी
को थामें
सब कुछ क़ुर्बान करने
को तैयार
सिर्फ़ उस सुनहरे पल
के लिए
मैं उसकी अप्रितम याद में
उसके आग़ोश में खोने को
टकटकी लगायें
उसकी सोच में डूबा-सा
ख़यालों में खोयें हुए हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


मैं एक्टर हूँ

मैं एक एक्टर हूँ
अभिनय कर रहा हूँ
किसी का किरदार
निभा रहा हूँ
मैं उसके दुःखों को
आँसुओं में बहा
रहा हूँ
मैं नाच रहा हूँ
क्यूँकि मेरे किरदार को
नाचना पसंद है
मैं हँस रहा हूँ
क्यूँकि मेरे किरदार को
हँसी आ रही है

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

मासूमियत

तेरे चेहरे की मासूमियत
और
साथ ही
बेपरवाह हँसी
एक सुकून देती है
स्वपनलोक-सा मुझे
अनंत वक़्त के लिये
अनिमेश रोके
रहती है
एक जगह मुझे
और फिर तेरी ज़ुल्फ़ें
लापरवाह हो जब
होंठों पर तेरे
बिखरतीं है
उसी वक़्त तेरी
मृदुल अंगुलियाँ
उन्हें हटाने को जब
ऊपर उठतीं है,
और फिर हल्की-सी
मुस्कुराती तेरी आँखे
जब मुझे देखती है
तो लगता है
मानो सब कुछ बस
इसी क्षण के लिये ही
था
मेरा इंतज़ार, मेरी ख़्वाहिश
मेरा ख़्वाब सब कुछ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'


जब भी मैं

जब भी मैं
ख़ुद को
तेरी आँखों में
देखता हूँ
तो
मुझे सब कुछ
उजला ही नज़र आता है,
मेरे चेहरे की मुस्कान
तेरी आँखों की मुस्कान
से
जब मिलती है
तो एक सुखद एहसास
देती है ,
तेरी पलके जब
झुक जाती है आहिस्ता से
तो
सब कुछ समां जाता है
अब इसे तेरी आँखों का
कमाल कहूँ या
मेरी नज़र का !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

रात

इस तनहा रात में
क्यूँकर कोई किसे
याद ना करे ,
जब शहर सारा सो
जाएँ
और नींद भी जब सोकर
थक जाये
तब
याद किसी की आना
लाजमी है,
सन्नाटे में जब सिर्फ
मंद शीतल बयार ही
सुनाई पड़े तो
उस वक़्त किसी की
याद का सहारा बन
जाना
तन्हाई में भी
खुद को
जीवित रखना है !!

द्वारा- नीरज 'थिंकर'

सूर्य जब डूबता है

सूर्य जब डूबता है
समन्दर में धीरे -धीरे
और
उसकी आभा भी
जब हल्के मनोरम रंग
को बिखेरते हुए डूबती है
संग उसके,
तो
फिर यें दिल भला
क्यूँ ना बहेले
क्यूँ ना डूबे संग उसके
उसकी खूबसूरती में
समाहित होने को
क्यूँ ना तरंगित होवे !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

आख़िरी रात

यें रात आख़िरी है
जब 
मैं इस तरह 
हो मुक्त भविष्य की चिंताओं 
से तमाम , 
दोस्तों के संग बैठकर 
बेफ़िक्री से 
मय का प्याला 
पी रहा हूँ ,
ये रात फिर 
इस तरह ख़ुशनुमा 
होगी
संदेह है !
फिर कभी 
मैं इस तरह बेफिक्र 
हो पाउँगा 
यें कहना मुश्किल है..
पर हाँ 
एक आशा के साथ 
मैं,एक मय का प्याला 
और पीकर 
उस वक़्त के लिए 
अभी से बेफ़िक्र  
हो जाना चाहता हूँ !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

मैं एक कवि हूँ

मैं एक कवि हूँ
जो
बेहोश होकर लिखता
हूँ,
क्योंकि
मुझे मालूम है
ये सत्ता बेहोशी की
हालत में है,
और
इसको चलाने वाले
दवा पीकर बेहोश
हो गये है,
वो ही दवा इन्होने
जनता में भी
बाँट दी है
ताकि वो भी
इनकी तरह
सोच सके, बोल सके
और
जरुरत पड़ने पर
उस सोच को
जमीं पर उतार सके,
मैं बेहोश होता हूँ
फिर लिखता हूँ
ताकि
हकीक़त को ज्यों का त्यों
देख सकूँ
और फिर उसे लिख सकूँ !!

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

समंदर

समंदर से उठती
हुयी यें लहरें
जिनमें उन्माद है
उमंग है, चाहत है
हौसला है आगे बढ़ने का,
मुझमें भी साहस भारती है
प्रेरणा देती है
बिना रुके, बिना थके
आगे बढ़ते रहना का 

Thursday, 9 April 2020

विरह में

जगमगाते तारों की 
रात में 
अंधेरा हूं मैं,
सब कुछ पास 
होने पर भी 
अधूरा हूं मैं,
बीते अनगिनत 
किस्सों का 
एक किस्सा हूँ मैं,
पतझड़ के मौसम में 
दरख्तों से टूटता हुआ 
एक पत्ता हूं मैं,
सुनहली रातों का 
एक बुझता-सा 
दिया हूँ मैं,
मंज़िल की ओर 
निकला 
एक भटका राही हूँ मैं,
एक बंधन में बंधा 
आज़ाद परिंदा हूं मैं,
और 
आने वाले कल के
इंतजार में
रुका हुआ आज हूं मैं,
सुलझी हुयी कहानियों का 
एक अनसुलझा पात्र हूँ मैं,
किसी के ख्वाबो की 
लम्बी रात हूं मैं,
अलसायें सपनों का 
एक आधा-सा 
स्वप्न हूँ मैं,
भीड़ में भी  
हाँ ,भीड़ में भी 
अकेला हूँ मैं -2 



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Sunday, 5 April 2020

मरते क्यों हो तुम ?

मरते क्यों हो तुम 
इतने जल्दी डरते 
क्यों हो तुम ?
मर कर तुम 
अमर हो जाओगे 
यह सोच कर 
मरते हो ?
या 
मर कर तुम्हे 
न्याय मिल जायेगा 
इसलियें 
मरते हो तुम ?
तब तुम 
गलत सोचते हो 
मरने पर 
बहुत जल्द 
भुला दिए जाओगे तुम,
मरना किसी चीज़ का 
हल तो नहीं है,
कुछ करना है 
यह सोच कर जियों तुम ,
इतनी जल्दी हार मान ले 
कैसे पुत्र हो तुम 
बाबा साहेब के ???

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

एक कसक

एक कसक मन में रह गयी                                  
बिन मिले ही ये रात ढल गयी,
हंसीं जो खिलखिला रही थी
पास मेरे
बिन कुछ कहे ही चली गयी,
होंठ जो कहने वाले थे
कुछ बात तेरे
बिन बात किए ही
सिल गये,
आँखें जो करने वाली थी
नजाकत साथ मेरे
ना जाने क्या बात थी कि
बिन कुछ करे ही
सो गयी,
ये रात ना जाने क्यों प्यारे
बिना उसके आलिंगन के ही
सुबह में हो गयी,
एक कसक थी जो मन में प्यारे
मन में ही रह गयी ||

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

तू कह दे तो

तू कह दे तो                  
तेरी आँखों का बन मैं काजल
तेरी आँखों में बस जाऊं
तुझको सवारू
तुझको निहारूं,

तू कह दे तो
तेरे गले का बन हार
तेरे दिल के करीब हो मैं जाऊं
तुझको श्रृंगारु
तुझको महकाऊं

तू कह दे तो
तेरी हाथो की बन मैं चूड़ियाँ
खनकूं
एक संगीत बनकर मैं
तेरे कानों में चहकूं,

तू कह दे तो
बनकर तितली मैं
तेरे पास उड़ता ही रहूँ
बनकर भंवरा
मंडराता फिरूँ
लाकर फुलों की सारी खुशबू
तुझ पर मैं उड़ेलूँ
तू कह दे तो .........----

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

स्वप्न

कभी-कभी स्वप्न मधुर
ऐसे आते ,
स्वर्ग की बगिया की
सैर हमें करवाते ,
ये ख़वाब मनमोहक
लुभावने इतने होते कि
इनमें ही हम
खोते चले जाते ,
यात्रा दूर गगन की ये
हमें करवाते ,

Saturday, 4 April 2020

बहुत दिन हुए

बहुत दिन हुए
तुझे देखे
तेरे पास बैठ बतियाएं ,
कि
तेरे साथ गुनगुनाएं ,
बित चली कई रातें
बिन तुझसे नैन लड़ाएं ,
कि
तेरी जुल्फ़े संवारें
तुझसे इश्क़ लड़ाएं ,
तुझको अपने दिल
की बात बताएं
तुझसे तेरे दिल की
बात सुने
बहुत दिन हुए !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'



आँखें

आँखों को ला इतनी पास
कि
डूब सकूँ मैं उनमें, ,
कि
पा सकूँ मैं सुकून
भरा एहसास ,
कि
कर सकूँ मैं उनसे
दो बात
बिखेर सकूँ मैं किस्सों
के हुजूम को ,
कि
ज़ी सकूँ मैं उनमें
जिंदगी के दो पल ,
कि
खो सकूँ में उनमें
अनन्त समय के लिए !!

द्वारा - नीरज  'थिंकर'  

Friday, 3 April 2020

जूनून

जूनून मिलने का अब
ख़त्म होने लगा है ,
प्यार भरी बातें भी अब
फीकी पड़ने लगी है,
स्वप्न भविष्य के बुनना अब
कम होने लगा है ,
ढूँढ एकांत प्रेमानुराग में
लिप्त होने की लालसा अब
कम होने लगी है ,
यादें उसकी अब
धूमिल पड़ने लगी है ,
ख़ूबसूरती का ख़ुमार भी अब
धीरे-धीरे उतरने लगा है !!

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

डर और प्यार

ये प्यार इतना डरा
हुआ क्यों है ?
इसको नज़र किसकी
लगी है ?
ये प्रेमी जोड़े किससे
बचते फिर रहे है ?
पग-पग पर ये
सहमते जाते
एकांत तलाशते
किससे भाग रहे है ?
ये प्यार को अब
हो क्या गया है ?
किसी की आहट मात्र से
क्यों कांप उठता है ?
क्यों कोई प्रेमी अब
अपनी प्रेमिका की
जुल्फ़े संवारने से डरता है ?
क्यों कोई माशूका अब
अपने प्रेमी के कर में कर डाल
निःसंकोच होकर नहीं चलती है ?
ये प्यार इतना डरा हुआ क्यों है -२

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

दिल्ली और मैं

दिल्ली अब दिल्ली-सी
लगने लगी है
यह जगह अब अपनी -सी
लगने लगी है,
भले ही हो यहाँ पर
समस्याएं अनेक
पर
दिल्ली अब मन को
भाने लगी है,
ये कॉलेज, ये हॉस्टल
सब अपना-सा लगने लगा है,
यहाँ की दीवारे भी अब
पहचानने लगी है,
यहाँ लगे पेड़-पौधे से
भी अब
बात होने लगी है,
यहाँ पड़ने वाली
कड़ाके की सर्दी से भी
अब
मोहब्बत होने लगी है !!

ये आग

ये आग क्यों दहक रही है ?
नज़ारे क्यों खामोश है ?
ये लोग क्यों जा रहे है
लिए आँखों में ज्वाला अपनी ?
ये जो कोहरा छाया हुआ है
सब कुछ इसमें समाया हुआ है ,
क्यों कहीं कोई प्यार नजर नहीं
आ रहा है ?
हर तरफ अन्धकार छा रहा है,
लोगो के चेहरे पर जो
ये आक्रोश नज़र आ रहा है
रंगबिरंगे इस शहर में
नफरत घोलता जा रहा है ,
सबको क्या हो गया है ये ?
हाथ में लिए हथियार सभी
किस ओर जा रहे है ?

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

तुझको देख कर

आज तुझे देखा तो
ऐसा लगा था
मेरा ख़वाब सच
हो गया ,
तू मेरे इतने करीब थी
मिलने से पहले हजार
थे सवाल
तुझसे मिला आज तो
सवालो का हुजूम
ख़त्म हो गया,
तेरे कोमल नयन थे
मेरी आँखों के इतने पास
लगा स्वप्नलोक में
मेरा प्रवेश हो गया ,
तेरे मृदुल हाथ थे
मेरे हाथों में
लगा कि
डर दुनिया का सारा अब
 ख़त्म हो गया !!

द्वारा - नीरज 'थिंकर' 

Wednesday, 1 April 2020

तुम मेरे लिए काफ़ी हो

तुम्हारा मेरे पास    
बैठकर 
मुझे निहारना 
समुन्द्र की 
लहरों में 
मेरा हाथ थाम कर 
चलना 
मेरे लिए काफ़ी है,
पथरीली राहों में 
नीले गगन के नीचे 
सुनसान सड़क पर 
तुम्हारा साथ होना 
काफ़ी है,
हर मुश्किल घड़ी में 
तुम्हारा हल्का-सा 
मुस्कुरा जाना 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम कहीं भी रहो 
पर 
पास होने का एक 
एहसास तुम्हारा 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा बेझिझक होकर 
मुझसे बाते करना 
और 
बातों ही बातोँ में 
मुझे गले लगाना 
मेरे लिए काफ़ी है,
तुम्हारा चेहरा 
हर परेशानी जो 
मेरी हर लेता है
और 
मेरे ग़मों को 
खुशियों में जो 
बदल देता है 
मेरे लिए काफ़ी है,
ज़माना हो भले ही 
ख़िलाफ़ मेरे 
तो होने दो
सब कुछ लुट जाए 
मेरा मुझसे तो 
लुट जाने दो 
तुम साथ हो 
मेरे लिए
इतना ही काफ़ी है -2

द्वारा- नीरज 'थिंकर' 

कोरोना काल में

Pic courtesy - Scroll.in
जब भटक रहा है 
इंसान दर-ब-दर 
तब तुम 
हाथ धोना उसे 
सीखा रहें हो,
है नहीं घर 
पास उसके 
फिर भी 
तुम उसे घर बैठना 
सीखा रहें हो,
वर्षों से झेली है 
'सामाजिक दूरी' 
जिसने, उसे तुम 
'सोशल डिस्टैन्सिंग' 
सीखा रहें हो ,
भूखा है पेट
बिलख़ रहें है बच्चे 
और 
तुम उसे डंडे की 
मार से डरा रहें हो,
अपने ही देश में 
लोग जब बेघर 
हो जाए
महामारी से ज्यादा 
भूख जब उन्हें 
सताने लगे,
तब तुम नाप 
सकते हो 
देश की तररकी 
और 
देख सकते हो 
विकास को करीब से
बहुत करीब से !!



द्वारा - नीरज 'थिंकर'

Friday, 27 March 2020

नीला है जग सारा

नीला है आसमां 
नीली है यें दीवारे 
घर की मेरे,
नीले है आसमां से 
लिपटे यें तारे 
नीली है यें नजरें 
देखती है जो इन्हें,
नीली है यें जमीं 
इस पर चलने 
वाला हर 
शख्स है नीला,
सातों समुन्द्र है नीले
नीला है वो जहाज 
जो 
चलता है अंदर इसके,
नीले है ये बादल 
नीली है बूंदे
बरसती है जो इनसे,
 नीला है वो झंडा 
जिस पर लिखा है 
नारा जय भीम का,
बाबा साहब का कोट
नीला 
नीला है कलम कांशीराम का 
सावित्रीबाई की साड़ी नीली
नीली है किताब संविधान की,
नीला है खेत 
हल जोतने वाला
किसान भी नीला 
धान नीला 
इसे खाने वाला
इंसान नीला,
नीली है मेरी हर ख्वाहिसे 
नीली है मेरी सारी चाहते ....- 3

द्वारा - नीरज  'थिंकर'



Wednesday, 25 March 2020

लॉकडाउन और तुम

इक्कीस दिनों का
यें लॉकडाउन 
तुम्हारे बिन 
मुश्किल है,
पर जीवन में 
हमेशा साथ होने 
के लिए 
यें दूरी
जरूरी भी तो है,
मालूम है कि
सब कुछ ठीक 
हो जायेगा
पर 
एक भय गहरा-सा 
सब कुछ ठहरा-सा 
स्मृतियां लाता है 
पुरानी 
बीती जो संग तुम्हारे
वो रातें याद आती है 
जो काली थी 
मगर उजली-सी 
लगती थी
आने वाली रातें 
कैसी होगी ?
सोचकर मन 
भयभीत हुए जाता है ..
लेकिन 
धुंधली-सी तुम्हारी 
वो मुस्कान 
सब कुछ भुला दिए 
जाती है 
और
फिर से तुमसे मिलने 
की चाह 
मन में उमंग भरे 
जाती है !!!

द्वारा - नीरज 'थिंकर'

एक पत्र दादा जी के नाम

दादा जी                                        आपके जाने के   ठीक एक महीने बाद   मैं लिख रहा हूँ पत्र   आपके नाम , मैं पहले...