मैं उस सपने में
फिर से
खो जाना चाहता हूँ
जिसमें हम और तुम
बरगद के पेड़ की
छांव में बैठ
बतिया रहे थे,
मैं तुम्हारी
ज़ुल्फ़ सँवार
रहा था,
और
तुम मुझे
अपनी मृदुल आँखों से
अनिमेश निहार रही थी ,
उस वक़्त हम भुल
तमाम परेशानियों को
एक-दूजे के
हाथ में हाथ डाले
अपना भविष्य
सँवार रहे थे ।
द्वारा- नीरज 'थिंकर'
फिर से
खो जाना चाहता हूँ
जिसमें हम और तुम
बरगद के पेड़ की
छांव में बैठ
बतिया रहे थे,
मैं तुम्हारी
ज़ुल्फ़ सँवार
रहा था,
और
तुम मुझे
अपनी मृदुल आँखों से
अनिमेश निहार रही थी ,
उस वक़्त हम भुल
तमाम परेशानियों को
एक-दूजे के
हाथ में हाथ डाले
अपना भविष्य
सँवार रहे थे ।
द्वारा- नीरज 'थिंकर'
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