भीड़ का कोई नाम
नहीं होता है,
ये गुमनाम-सी
आती है
एक दंगे-सी
फैल जाती है,
बेमतलब से सब
भीड़ बन
किसी शराबी पर
टूट पड़ते है,
कोई अपने घर
का ग़ुस्सा तो
कोई अन्य परेशानियों से
परेशान
अपने हाथ-पाँव
परिस्थितियों की मार से
मरे हुए
उस आदमी पर
आज़माने लगते है,
हम किस समाज का
निर्माण कर रहे है ?
जहाँ पर
एक मरे हुए आदमी को
कई मरे हुए आदमी
बड़ी निर्दयता से
मार रहे है !
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
नहीं होता है,
ये गुमनाम-सी
आती है
एक दंगे-सी
फैल जाती है,
बेमतलब से सब
भीड़ बन
किसी शराबी पर
टूट पड़ते है,
कोई अपने घर
का ग़ुस्सा तो
कोई अन्य परेशानियों से
परेशान
अपने हाथ-पाँव
परिस्थितियों की मार से
मरे हुए
उस आदमी पर
आज़माने लगते है,
हम किस समाज का
निर्माण कर रहे है ?
जहाँ पर
एक मरे हुए आदमी को
कई मरे हुए आदमी
बड़ी निर्दयता से
मार रहे है !
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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