दिल्ली अब तू बहुत याद आएगी
तेरे साथ बिताए पल बहुत रुलाएँगे
मैं तुझे छोडकर
कैसे रह पाउँगा ?
दिल को मैं अपने
कैसे समझाऊँगा ?
आँखें बहुत नम है
और
जाने की इच्छा भी कम है
हँसी -ठिठोली और मस्ती
की
जो तेरी गोद में
कैसे मैं भूल पाऊँगा ?
दिल्ली तू मेरा अब दिल
बन चुकी है ,
दिल को निकाल कर
कैसे मैं जीं पाऊँगा ?
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
तेरे साथ बिताए पल बहुत रुलाएँगे
मैं तुझे छोडकर
कैसे रह पाउँगा ?
दिल को मैं अपने
कैसे समझाऊँगा ?
आँखें बहुत नम है
और
जाने की इच्छा भी कम है
हँसी -ठिठोली और मस्ती
की
जो तेरी गोद में
कैसे मैं भूल पाऊँगा ?
दिल्ली तू मेरा अब दिल
बन चुकी है ,
दिल को निकाल कर
कैसे मैं जीं पाऊँगा ?
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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