चैत्यभूमि जाकर
मैं ढूँढ पाया
अपना अस्थितव
और
एक सुकून
जो मुझमें भर सका
एक ऊर्जा,
बाबा साहेब की
आँखों में
मैं देख पाया उन
संघर्षों को
जो उन्होंने जिया
हमारे लिये,
और
मैं महसूस कर पाया
उनकी मंद मुस्कुराहट में
छुपी वेदना को
जो हमें अब भी
संभल जाने की
ओर संकेत करती
हुयी-सी प्रतीत
हो रही है !!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
मैं ढूँढ पाया
अपना अस्थितव
और
एक सुकून
जो मुझमें भर सका
एक ऊर्जा,
बाबा साहेब की
आँखों में
मैं देख पाया उन
संघर्षों को
जो उन्होंने जिया
हमारे लिये,
और
मैं महसूस कर पाया
उनकी मंद मुस्कुराहट में
छुपी वेदना को
जो हमें अब भी
संभल जाने की
ओर संकेत करती
हुयी-सी प्रतीत
हो रही है !!
द्वारा - नीरज 'थिंकर'
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