इस तनहा रात में
क्यूँकर कोई किसे
याद ना करे ,
जब शहर सारा सो
जाएँ
और नींद भी जब सोकर
थक जाये
तब
याद किसी की आना
लाजमी है,
सन्नाटे में जब सिर्फ
मंद शीतल बयार ही
सुनाई पड़े तो
उस वक़्त किसी की
याद का सहारा बन
जाना
तन्हाई में भी
खुद को
जीवित रखना है !!
द्वारा- नीरज 'थिंकर'
क्यूँकर कोई किसे
याद ना करे ,
जब शहर सारा सो
जाएँ
और नींद भी जब सोकर
थक जाये
तब
याद किसी की आना
लाजमी है,
सन्नाटे में जब सिर्फ
मंद शीतल बयार ही
सुनाई पड़े तो
उस वक़्त किसी की
याद का सहारा बन
जाना
तन्हाई में भी
खुद को
जीवित रखना है !!
द्वारा- नीरज 'थिंकर'
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